जितिया की कहानी | Jitiya ki kahani | 3 कहानी

Published By: Bhakti Home
Published on: Wednesday, Sep 25, 2024
Last Updated: Wednesday, Sep 25, 2024
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Jitiya ki kahani | Jivitputrika ki kahani | जितिया की कहानी | जीवित्पुत्रिका की कहानी
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Jivitputrika ki kahani, Jitiya ki kahani: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जितिया व्रत की कहानी, जितिया की कहानी ( Jitiya ki kahani ) पढ़ने से संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसलिए जितिया व्रत के दिन जीमूत वाहन की कहानी जरूर पढ़नी चाहिए। जितिया की कहानी यहां देखें।

 

जितिया की कहानी | Jitiya ki kahani

[1] जितिया की कहानी | Jitiya ki kahani | जीमूतवाहन कहानी 

[ jivitputrika ki kahani, जीवित्पुत्रिका की कहानी ]

गंधर्वों में 'जीमूतवाहन' नाम का एक राजकुमार था। वह भी बड़ा उदार और दानशील था। उसे बहुत कम समय में ही सत्ता मिल गई थी, लेकिन उसने उसे स्वीकार नहीं किया। उसे राजपाट अच्छा नहीं लगता था। 

ऐसे में वह राज्य छोड़कर अपने पिता की सेवा करने के लिए वन में चला गया। वहां उसका विवाह मलयवती नाम की राजकुमारी से हुआ। एक दिन वन में घूमते हुए जीमूतवाहन ने एक वृद्ध महिला को रोते हुए देखा। 

उसका दुख देखकर उससे रहा नहीं गया और उसने वृद्ध महिला की इस हालत का कारण पूछा। 

इस पर वृद्ध महिला ने कहा, 'मैं नागवंश की महिला हूं और मेरा एक ही पुत्र है। 

मैंने पक्षीराज गरुड़ के सामने प्रतिदिन भोजन के लिए एक सांप सौंपने की प्रतिज्ञा की है, जिसके अनुसार आज मेरे पुत्र 'शंखचूड़' को भेजने का दिन है। आप ही बताएं, यदि मेरे इकलौते पुत्र की बलि दे दी गई, तो मैं किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करूंगा। 

यह सुनकर जीमूतवाहन का हृदय पिघल गया। उसने कहा कि वह उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेगा। जीमूतवाहन ने कहा कि वह लाल कपड़े से खुद को ढक लेंगे और बलि की शिला पर लेट जाएंगे। 

जीमूतवाहन ने आखिरकार ऐसा ही किया। ठीक समय पर पक्षीराज गरुड़ भी आ गए और उन्होंने लाल कपड़े से ढके जीमूतवाहन को अपने पंजों में पकड़ लिया और पहाड़ की चोटी पर बैठ गए।

गरुड़जी यह देखकर हैरान रह गए कि जिस व्यक्ति को उन्होंने अपने पंजों में कैद किया था, उसकी आंखों में न तो आंसू थे और न ही आह। 

ऐसा पहली बार हुआ था। अंत में गरुड़जी ने जीमूतवाहन से अपना परिचय देने को कहा। 

पूछने पर जीमूतवाहन ने उन्हें वह सब कुछ बता दिया जो उन्होंने उस वृद्ध महिला से बात की थी। 

पक्षीराज गरुड़ हैरान रह गए। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई किसी की मदद के लिए ऐसा बलिदान दे सकता है।

गरुड़जी इस बहादुरी को देखकर बहुत खुश हुए और जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया। 

उन्होंने यह भी कहा कि वह भविष्य में सांपों की बलि नहीं देंगे। 

इस तरह एक मां के बेटे की जान बच गई। मान्यता है कि तभी से बेटे की सलामती के लिए जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।

 

[2] जितिया की कहानी | Jitiya ki kahani | चिल्हो सियारो कहानी 

[ jivitputrika ki kahani, जीवित्पुत्रिका की कहानी ]

जीवित्पुत्रिका व्रत में चिल्हो सियारो की भी कथा सुनने को मिलती है। यह संक्षेप में इस प्रकार है- एक जंगल में सेमर के पेड़ पर एक चील रहती थी। पास की झाड़ी में एक मादा सियार भी रहती थी। दोनों का आपस में अच्छा व्यवहार था।

चिल्हो जो भी खाने के लिए लाती, उसमें से एक हिस्सा मादा सियार के लिए जरूर रखती। मादा सियार भी चिल्हो का उसी तरह ख्याल रखती। इस तरह दोनों का जीवन सुखपूर्वक बीत रहा था। 

एक बार जंगल के पास के गांव में महिलाएं जिउतिया पूजा की तैयारी कर रही थीं। चिल्हो ने उन्हें बहुत ध्यान से देखा और अपनी सहेली सियारो को भी बताया।

तब चिल्हो और सियारो ने निर्णय लिया कि वे भी यह व्रत रखेंगी। सियारो और चिल्हो ने जिउतिया का व्रत रखा।

बड़ी श्रद्धा और लगन से दोनों ने पूरे दिन भूखे-प्यासे रहकर व्रत रखा और खुशहाली की कामना की, लेकिन जैसे-जैसे रात होने लगी, सियार को भूख-प्यास सताने लगी। 

जब उससे और सहन नहीं हुआ तो वह जंगल में गई और जी भरकर मांस और हड्डियां खाईं। चिल्हो ने जब हड्डियां चबाने की आवाज सुनी तो उसने पूछा यह कैसी आवाज है। 

सियार ने जवाब दिया- बहन, भूख से पेट गुड़गुड़ा रहा है, यह उसकी आवाज है, लेकिन चिल्हो को पता चल गया। 

उसने सियार को खूब डांटा कि जब व्रत नहीं रखा जा सकता था, तो व्रत क्यों लिया! सियारो को शर्म आई, लेकिन व्रत टूट गया। 

चिल्हो ने पूरी रात भूखी-प्यासी रहकर व्रत पूरा किया।

अगले जन्म में दोनों मानव रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें बनीं। सियारिन बड़ी बहन बनी और उसका विवाह एक राजकुमार से हुआ। चिल्हो छोटी बहन बनी, उसका विवाह उसी राज्य के मंत्री के बेटे से हुआ।

बाद में दोनों राजा और मंत्री बने। रानी सियारिन के जो भी बच्चे होते, वे मर जाते जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ और मजबूत रहते। इससे वह ईर्ष्या करने लगी।

कभी-कभी वह उनके सिर कटवाकर डिब्बे में रखवा देती थी, लेकिन वे सिर मिठाई में बदल जाते थे और बच्चों का एक बाल भी नहीं टूटता था। उसने कई बार अपनी बहन के बच्चों और उसके पति को मारने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। 

अंत में भगवान की कृपा से उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने माफी मांगी और अपनी बहन की सलाह पर जीवित पुत्रिका व्रत को विधि-विधान से किया और उसके बेटे भी बच गए।

 

[3] जितिया की कहानी | Jitiya ki kahani | श्री कृष्ण की कहानी 

[ jivitputrika ki kahani, जीवित्पुत्रिका की कहानी ] 

यह कथा महाभारत काल से जुड़ी है। महाभारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित था और उसके अंदर बदले की आग तीव्र थी, जिसके कारण उसने पांडवों के शिविर में घुसकर पांच सोए हुए लोगों को पांडव समझकर मार डाला, लेकिन वे सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं।

 उसके इस अपराध के कारण अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली, जिसके परिणामस्वरूप अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, जिसे निष्प्रभावी करना असंभव था। 

उत्तरा के बच्चे का जन्म लेना आवश्यक था, जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी अच्छे कर्मों का फल उत्तरा के अजन्मे बच्चे को दिया और उसे गर्भ में ही पुनर्जीवित कर दिया। 

गर्भ में मरने और जीवित हो जाने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और बाद में वह राजा परीक्षित बना। तभी से यह व्रत रखा जाता है।

 

 

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