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Tulsi vivah kahani in Hindi, तुलसी विवाह की कहानी - तुलसी विवाह की कहानी हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र और भावनात्मक कथा है, जो भक्तों के लिए प्रेम, भक्ति और त्याग का प्रतीक है।
तुलसी विवाह कहानी | Tulsi vivah kahani in Hindi
इस पवित्र दिन पर तुलसी (वृंदा) माता और भगवान विष्णु का विवाह संपन्न होता है। आइए, जानते हैं इस कथा के विभिन्न चरण:
1. वृंदा का जन्म और जालंधर से विवाह
- वृंदा का जन्म: तुलसी, जिनका असली नाम वृंदा था, एक असुर राजकुमारी थीं और असुर जालंधर की पत्नी थीं। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थीं और अपनी गहन भक्ति के कारण उनके पति जालंधर को अमरता का वरदान मिला था।
- वृंदा की भक्ति: वृंदा की अटल भक्ति और पवित्रता ने जालंधर को इतनी शक्ति दी कि देवता उसे हरा नहीं पा रहे थे। उसकी भक्ति उसके पति के लिए रक्षाकवच बन गई थी, जिससे देवताओं को चुनौती का सामना करना पड़ा।
2. जालंधर का अभिमान और देवताओं से संघर्ष
- संघर्ष का प्रारंभ: शक्ति और अमरता के अहंकार में जालंधर ने देवताओं को चुनौती देना शुरू कर दिया। उसने भगवान शिव से भी युद्ध करने का दुस्साहस किया। उसकी शक्ति से परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की विनती की।
- विष्णु की दुविधा: वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं, और विष्णु के लिए उनकी भक्ति को तोड़ना अत्यंत कठिन था। लेकिन देवताओं की रक्षा के लिए उन्हें वृंदा की पवित्रता को भंग करना पड़ा ताकि जालंधर को हराया जा सके।
3. भगवान विष्णु का छल और जालंधर का अंत
- विष्णु का रूप बदलना: विष्णु भगवान ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंचकर उसकी पवित्रता भंग की। इससे जालंधर अपनी शक्ति खो बैठा और भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।
- वृंदा का क्रोध और विष्णु को श्राप: जब वृंदा को सच्चाई का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गईं। उन्होंने भगवान विष्णु को शिला (शालिग्राम) बनने का श्राप दे दिया और अपने पति की मृत्यु के शोक में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
4. वृंदा का तुलसी रूप में पुनर्जन्म और विष्णु से विवाह
- वृंदा का पुनर्जन्म: अपनी भक्ति और त्याग के कारण वृंदा को तुलसी के पौधे के रूप में पुनर्जन्म मिला। इस तुलसी में उनकी पवित्रता और भक्ति का संचार था। भगवान विष्णु ने उनकी भक्ति को सम्मानित करने का वचन दिया।
- विष्णु का वचन और तुलसी विवाह: भगवान विष्णु ने कहा कि वे तुलसी से विवाह करेंगे और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में अपनाएंगे। इसी कारण से तुलसी विवाह का आयोजन होता है, जहां तुलसी माता और भगवान शालिग्राम (विष्णु) का विवाह संपन्न किया जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व
- भक्ति का प्रतीक: तुलसी विवाह वृंदा की भक्ति, पवित्रता और त्याग का प्रतीक है। यह विवाह देवताओं और भक्तों के बीच प्रेम और श्रद्धा का अटूट बंधन दर्शाता है।
- विवाह की रस्में: तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और भगवान शालिग्राम के साथ विवाह की सभी रस्में निभाई जाती हैं। मान्यता है कि इस पवित्र विवाह से घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।
निष्कर्ष
तुलसी विवाह की कथा प्रेम, भक्ति और त्याग का आदर्श उदाहरण है। तुलसी माता के इस रूप में विष्णु के प्रति उनके अटल प्रेम और आस्था का संदेश मिलता है, जो हमें जीवन में भक्ति और पवित्रता का महत्व समझाता है। इस दिन तुलसी और विष्णु के विवाह का आयोजन कर भक्त अपने जीवन में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।