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राधा अष्टमी व्रत विधि | Radha ashtami vrat vidhi

Published By: Bhakti Home
Published on: Tuesday, Sep 10, 2024
Last Updated: Tuesday, Sep 10, 2024
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Radha ashtami vrat vidhi
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राधा अष्टमी व्रत विधि (Radha ashtami vrat vidhi): श्री राधा रानी को समर्पित राधा अष्टमी के पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व भगवान कृष्ण जन्माष्टमी के बाद मनाया जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं। 

आज भी लोग भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी  के पवित्र प्रेम की मिसाल देते हैं। शायद यही वजह है कि यह संयोग है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और ठीक 15 दिन बाद इसी माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी मनाई जाती है। 

राधा अष्टमी व्रत विधि | Radha ashtami vrat vidhi

कहा जाता है कि राधा अष्टमी के दिन व्रत रखने और राधा संग कृष्ण की पूजा करने से जीवन खुशियों से भर जाता है।

धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से किशोरी जी प्रसन्न होती हैं। मान्यता के अनुसार राधा अष्टमी को श्री राधा रानी के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। अगर आप भी राधा अष्टमी का व्रत रखते हैं तो राधा अष्टमी आने से पहले जान लें कि यह व्रत कैसे किया जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे में।

राधा अष्टमी पूजा विधि (Radha ashtami puja vidhi)

  1. प्रतिदिन की तरह सुबह उठकर स्नान, ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
  2. दोपहर में भगवान कृष्ण और राधा रानी की विधिवत पूजा करें।
  3. इसके लिए पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल से पवित्र करें और पंचरंगी मंडप बनाकर उसे ध्वजा, माला, वस्त्र, पताका, तोरण आदि से सजाएं।
  4. मंडप के अंदर सोलह पंखुड़ियों वाला कमल यंत्र बनाएं और उस कमल के मध्य में श्री राधा कृष्ण के जोड़े को पश्चिम दिशा की ओर मुख करके दिव्य आसन पर स्थापित करें।
  5. परिवार के साथ पूजा करें, राधा रानी और कृष्ण को धूप, दीप, फल, फूल, अगरबत्ती, मिठाई अर्पित करें, उनकी स्तुति और आरती करें।
  6. ॐ ह्रीं श्रीरााधिकाये नमः मंत्र का एक माला जाप करें।
  7. दिन में हरिचर्चा करें और रात में नाम संकीर्तन करें।
  8. दिन में एक बार फल खाएं और मंदिर में दीपदान करें।

 

राधा रानी के मंत्र

ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।

ब्रह्मा विष्णु द्वारा राधा की पूजा मंत्र

नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।
नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।

 

राधा अष्टमी आरती | राधा जी की आरती

आरती राधा जी की कीजै, कृष्ण संग जो करे निवासा,
कृष्ण करें जिन पर विश्वासा, आरती वृषभानु लली की कीजै।


कृष्ण चन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई, उसी शक्ति की आरती कीजै।
नंद पुत्र से प्रीति बढ़ाई, जमुना तट पर रास रचाई, आरती रास रचाई की कीजै।


प्रेम राह जिसने बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई, आरती राधा जी की कीजै।
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती, आरती दु:ख हरणी की कीजै।


कृष्ण चन्द्र ने प्रेम बढ़ाया, विपिन बीच में रास रचाया, आरती कृष्ण प्रिया की कीजै।
दुनिया की जो जननि कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे, आरती जगत मात की कीजै।


निज पुत्रों के काज संवारे, आरती गायक के कष्ट निवारे, आरती विश्वमात की कीजै।

 

भगवान श्रीकृष्ण की आरती 

राधा अष्टमी के दिन पूजा के समय भगवान कृष्ण की भी आरती जरूर करें-

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

 

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली


भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

 

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।


बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

 

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा


बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

 

 

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