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संतान सप्तमी व्रत विधि | Santan saptami vrat vidhi in hindi

Published By: Bhakti Home
Published on: Sunday, Sep 8, 2024
Last Updated: Sunday, Sep 8, 2024
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Santan saptami vrat vidhi in hindi
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santan saptami vrat vidhi in hindi: संतान सप्तमी को हिंदू व्रत और त्योहारों में एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। हर मां अपने बच्चे के जन्म, उसकी उन्नति और उसकी लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती है। 

यह व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। कई लोग इसे मुक्ताभरण व्रत और ललिता सप्तमी व्रत के नाम से भी जानते हैं।

Santan saptami vrat vidhi in hindi | संतान सप्तमी व्रत विधि हिंदी में

संतान सप्तमी व्रत विधि (Santan saptami vrat vidhi ) नीचे दी गई है। 

  1. भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माता-पिता सुबह जल्दी उठकर स्नान करके संतान प्राप्ति या उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए इस व्रत की शुरुआत करते हैं।
  2. इस व्रत की पूजा दोपहर तक पूरी हो जाए तो अच्छा माना जाता है।
  3. सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनकर भगवान विष्णु, शिव पार्वती की पूजा की जाती है।
  4. दोपहर में चौक बनाकर उस पर भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
  5. उनकी पूजा करने के बाद उन्हें चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहण किया जाता है और पूरे दिन व्रत रखा जाता है।

संतान सप्तमी की पूजा कैसे करते हैं?

  1. शिव पार्वती की मूर्ति को स्नान कराकर चंदन का लेप लगाया जाता है। अक्षत, श्रीफल (नारियल), सुपारी चढ़ाई जाती है। दीपक जलाया जाता है और भोग लगाया जाता है।
  2. शिव भगवान को संतान की रक्षा का संकल्प लेकर डोरा बांधा जाता है।
  3. बाद में यह डोरा अपने बच्चे की कलाई पर बांधा जाता है।
  4. संतान सप्तमी व्रत कथा पढ़ें
  5. इस दिन खीर और पूरी का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
  6. परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर आरती की जाती है। भगवान के सामने माथा रखकर मन की इच्छा उनसे कही जाती है।
  7. बाद में उस भोग को परिवार के सभी सदस्यों और आस-पड़ोस में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

 

यह भी पढ़ें - संतान सप्तमी व्रत कथा | Santan saptami vrat katha

 

संतान सप्तमी व्रत क्यों रखा जाता है?

  1. पुत्र प्राप्ति की कामना से महिलाएं यह व्रत रखती हैं। 
  2. संतान के सभी दुखों और समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से यह व्रत रखा जाता है। 
  3. महिलाएं अपने बच्चों की सुरक्षा की भावना के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत रखती हैं। 
  4. संतान की खुशहाली के लिए यह व्रत माता-पिता दोनों ही रख सकते हैं।

 

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