
Vat savitri vrat vidhi in Hindi - वट सावित्री व्रत हिंदू संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जो विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है और इसमें वट वृक्ष (बड़ का पेड़) की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की पूजा विधि, महत्व और इससे जुड़ी मान्यताएं।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि | Vat savitri vrat vidhi in Hindi
शुभ समय और तैयारी:
- प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें (विशेषकर लाल या पीले रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं)।
- सोलह श्रृंगार करें और व्रत का संकल्प लें।
पूजा सामग्री:
- वट वृक्ष की छोटी डाली या चित्र
- लाल/पीला वस्त्र
- हल्दी, कुमकुम, चावल
- धागा (सूत्र), फल, फूल, मिठाई
- मिट्टी का हाथी, सावित्री-सत्यवान की प्रतिमा
- पूजा थाली और कलश
वट सावित्री व्रत पूजन विधि:
- वट वृक्ष के पास जाकर भूमि पर स्वच्छ आसन बिछाएं।
- हल्दी-कुमकुम से तने पर तिलक करें और पूजा की सभी सामग्री अर्पित करें।
- कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष के तने पर सात बार (या श्रद्धानुसार 21 या 108 बार) लपेटें।
- हर परिक्रमा के साथ मन में पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख की कामना करें।
- सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
वट सावित्री व्रत का महत्व
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट सावित्री व्रत का संबंध देवी सावित्री और सत्यवान की कथा से जुड़ा है।
- कहा जाता है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापिस जीवन दिलवाया था।
- वह घटना वट वृक्ष के नीचे घटी थी, तभी से इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है।
- मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव का वास होता है।
- साथ ही, इसकी लटकी हुई शाखाओं को माता सावित्री का स्वरूप भी माना जाता है।
वट वृक्ष पर कच्चा सूत कितनी बार लपेटना चाहिए?
- पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष पर कच्चा सूत लपेटने के लिए 7, 21 या 108 बार परिक्रमा की जाती है
- अधिकतर महिलाएं 7 बार सूत लपेटती हैं, जो सात जन्मों के वैवाहिक बंधन का प्रतीक माना जाता है।
- यह परंपरा बहुत पुरानी है और इसे अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
कच्चा सूत लपेटने और वट वृक्ष की पूजा के लाभ
- पति की आयु लंबी होती है और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
- वैवाहिक जीवन में स्थिरता और मिठास बनी रहती है।
- घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- देवी सावित्री और त्रिदेवों की कृपा प्राप्त होती है।
- पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास का बंधन और गहरा होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. वट सावित्री व्रत कब रखा जाता है?
उत्तर: वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है। यह तिथि आमतौर पर मई-जून के महीने में आती है।
Q2. व्रत के दिन क्या पहनना चाहिए?
उत्तर: इस दिन लाल या पीले रंग के पारंपरिक वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं।
Q3. वट वृक्ष पर कितनी बार सूत लपेटना चाहिए?
उत्तर: आमतौर पर 7 बार सूत लपेटा जाता है। श्रद्धानुसार महिलाएं 21 या 108 बार भी लपेट सकती हैं।
Q4. क्या इस दिन सावित्री सत्यवान कथा का पाठ जरूरी है?
उत्तर: हां, व्रत की पूर्णता के लिए सावित्री सत्यवान की कथा का पाठ करना आवश्यक होता है।
Q5. क्या विवाहित महिलाएं ही यह व्रत रख सकती हैं?
उत्तर: हां, यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन (विवाहित) महिलाओं के लिए होता है, जो अपने पति के लिए व्रत करती हैं।
निष्कर्ष
वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय नारी शक्ति, प्रेम, त्याग और समर्पण का प्रतीक भी है। इस दिन की पूजा विधि और परंपराएं जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं और वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाती हैं। कच्चा सूत लपेटना, वट वृक्ष की पूजा और कथा का श्रवण करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।