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गिद्ध और मानवता - प्रेरक कहानी

Published By: Bhakti Home
Published on: Wednesday, Oct 25, 2023
Last Updated: Sunday, Aug 4, 2024
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Vulture and Humanity
Table of contents

एक युवा गिद्ध अपने माता-पिता के साथ रहता था। एक दिन गिद्ध का बच्चा अपने पिता के पास गया और बोला, “पिताजी, मुझे भूख लगी है।”
गिद्ध पिता ने उत्तर दिया, "ठीक है, बस एक क्षण रुको। मैं तुम्हारे लिए भोजन लेकर आता हूँ।" वह उड़ान भरने की तैयारी करने लगा। हालाँकि, उसके बच्चे ने टोकते हुए कहा, "रुको, पिताजी, आज मुझे मानव मांस का स्वाद आया है।"
"बहुत अच्छा, मैं देखूंगा कि मैं क्या कर सकता हूं," गिद्ध पिता ने मानव बस्ती की ओर उड़ान भरने से पहले अपने बेटे के सिर को अपनी चोंच से धीरे से थपथपाते हुए कहा।

बस्ती में पहुँचकर गिद्ध कुछ देर तक इधर-उधर चक्कर लगाता रहा लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली। थककर और हारकर वह सुअर के मांस का एक टुकड़ा लेकर घोंसले में लौट आया। यह देखकर गिद्ध के बच्चे ने निराशा व्यक्त की, "पिताजी, मैंने मनुष्य का मांस माँगा था, लेकिन आप सुअर का मांस ले आये।"

गिद्ध शर्मिंदा हुआ और बोला, "ठीक है, मुझे थोड़ा समय दो।" एक बार फिर उसने उड़ान भरी, काफी दूर तक तलाश की, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली। घोंसले की ओर वापस जाते समय, उसने एक मरी हुई गाय को देखा, उसने अपनी तेज़ चोंच से उसके मांस का एक टुकड़ा तोड़ दिया और उसे घर ले गया।

यह देखकर, गिद्ध का बच्चा अचानक परेशान हो गया और बोला, "पिताजी, यह गाय का मांस है। मुझे मानव मांस की इच्छा है। क्या आप मेरी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?"

अपने बेटे की गुहार सुनकर गिद्ध को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उन्होंने अपने बेटे की इच्छा पूरी करने के लिए एक योजना बनाई। उसने सुअर के मांस का एक बड़ा टुकड़ा लिया और उसे एक मस्जिद की चारदीवारी के अंदर रख दिया। फिर, उसने गाय का मांस उठाया और एक मंदिर के पास फेंक दिया। मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों ने अपनी भूमिका निभाई और देखते ही देखते पूरा शहर आग से जलने लगा। रात होते-होते हर जगह इंसानी लाशें बिखरी पड़ी थीं।

यह देखकर गिद्ध बहुत खुश हुआ। उसने मानव शरीर से मांस का एक बड़ा हिस्सा काटा और उसे वापस घोंसले में ले आया। गिद्ध का बच्चा बहुत खुश हुआ और पूछा, "पिताजी, यह कैसे हुआ? आपको इतना सारा मानव मांस कहाँ से मिला?"

गिद्ध ने उत्तर दिया, "बेटा, मनुष्य अपने आप को सबसे बुद्धिमान प्राणी मानते हैं, फिर भी वे छोटी-छोटी बातों पर बिना सोचे-समझे, जानवरों से भी बदतर क्रूरता पर उतर आते हैं। सदियों से मनुष्य के भेष में गिद्ध ऐसा करते रहे हैं। मैंने इसका फायदा उठाया और उन्हें जानवरों से भी अधिक क्रूर प्राणियों में बदल दिया।"

कहानी हमें एक प्रश्न के साथ छोड़ती है: हमारे बीच के ये गिद्ध कब तक हमें परेशान करते रहेंगे? और कब तक हम छोटी-छोटी बातों पर, इंसानों का खून बहाते हुए अपनी इंसानियत को ख़त्म होने देंगे?

यदि यह कहानी विचार उत्पन्न करती है तो कृपया इसे दूसरों के साथ साझा करें। आप नहीं जानते, आपका छोटा सा प्रयास इंसानों के बीच छुपे गिद्ध को एक सच्चे इंसान में बदलने में मदद कर सकता है।

 

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