अजा एकादशी व्रत कथा | Aja ekadashi vrat katha

Published By: Bhakti Home
Published on: Thursday, Aug 29, 2024
Last Updated: Thursday, Aug 29, 2024
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अजा एकादशी व्रत कथा हिंदी में, aja ekadashi vrat katha : अजा एकादशी का व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है। पद्म पुराण में वर्णित अजा एकादशी की कथा के अनुसार इस कथा को पढ़ने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। 

अजा एकादशी का व्रत रखने वालों को यह कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। तभी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

 

अजा एकादशी व्रत कथा | Aja ekadashi vrat katha

युधिष्ठिर ने पूछा- जनार्दन। अब मैं सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी होती है? कृपा करके मुझे बताइए।

भगवान कृष्ण ने कहा- राजन! एकाग्रचित्त होकर सुनिए। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'अजा' कहा गया है। 

यह सभी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जो कोई भगवान हृषिकेश की पूजा करता है और इसका व्रत करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। 

पूर्वकाल में हरिश्चंद्र नाम के एक प्रसिद्ध सम्राट थे, जो समस्त जगत के स्वामी थे और सत्यनिष्ठ थे। एक बार कुछ कर्मों का फल भोगने के कारण उन्हें अपना राज्य खोना पड़ा।

राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया। फिर उसने स्वयं को भी बेच दिया। 

पुण्यात्मा होते हुए भी उन्हें एक चांडाल के दास बनकर रहना पड़ा। वे मृतक का कफन पहनते थे। 

इसके बावजूद महान राजा हरिश्चंद्र सत्य से विचलित नहीं हुए। 

इस प्रकार उन्होंने कई वर्ष एक चांडाल की दासता में बिताए। इससे राजा बहुत चिंतित हो गए। 

वह बहुत दुःखी हुआ और सोचने लगा- 'मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? मेरा उद्धार कैसे होगा?' 

ऐसा विचार करता हुआ वह शोक के समुद्र में डूब गया। राजा को चिन्ताग्रस्त जानकर एक ऋषि उसके पास आये, वे महर्षि गौतम थे। 

श्रेष्ठ ब्राह्मण को आते देख गुप्तरेह ने उनके चरणों में प्रणाम किया और गौतम के सामने हाथ जोड़कर खड़े होकर उन्हें अपना सारा दु:ख समाचार सुनाया। 

राजा के वचन सुनकर गौतम ने कहा- 'हे राजन! भादों के कृष्णपक्ष में 'अजा' नाम की अत्यन्त शुभ एकादशी आने वाली है, जो पुण्य देने वाली है। तुम इसका व्रत करो। इससे तुम्हारे पाप नष्ट हो जायेंगे। तुम्हारे भाग्य से आज से सातवें दिन एकादशी है। 

उस दिन व्रत करो और रात्रि में जागरण करो।'

ऐसा कहकर महर्षि गौतम अन्तर्धान हो गये। मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चंद्र ने उस उत्तम व्रत को किया। 

उस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी दुख दूर हो गये। उसकी पत्नी और पुत्र पुनः जीवित हो गये। 

आकाश में नगाड़े बजने लगे। स्वर्ग से पुष्पों की वर्षा होने लगी। 

एकादशी के प्रभाव से राजा को निष्कंटक राज्य प्राप्त हुआ और अन्त में वह अपनी प्रजा तथा बन्धु-बान्धवों के साथ स्वर्ग में जा पहुँचा। 

राजा युधिष्ठिर! जो मनुष्य इस प्रकार का व्रत करते हैं, वे सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को जाते हैं। इसे पढ़ने और सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

 

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