
हल छठ व्रत कथा (Hal chhath vrat katha) भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर पढ़ी जाती है
यह भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई श्री बलरामजी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। हल छठ व्रत या हल षष्ठी व्रत की कथा नीचे वर्णित है।
हल छठ व्रत कथा (Hal chhath vrat katha)
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसकी प्रसव तिथि बहुत निकट थी।
एक ओर उसे प्रसव की चिंता थी, दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था।
उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया, तो गौ-रस वहीं पड़ा रह जाएगा।
यह सोचकर उसने दूध-दही के बर्तन सिर पर रखे और उन्हें बेचने के लिए चल पड़ी, लेकिन कुछ दूर जाने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा होने लगी।
वह एक झरबेरी के पेड़ की ओट में चली गई और वहीं उसने एक बच्चे को जन्म दिया।
वह बालक को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई।
संयोगवश उस दिन हल षष्ठी थी। उसने गाय-भैंस के मिश्रित दूध को भैंस का दूध कहकर सीधे-सादे ग्रामीणों को बेच दिया।
उधर, जिस झरबेरी के पेड़ के नीचे वह बालक को छोड़कर गई थी, उसके पास ही एक किसान खेत जोत रहा था।
अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल की धार बालक के शरीर में घुसने से बालक की मृत्यु हो गई।
इस घटना से किसान को बहुत दुख हुआ, फिर भी उसने साहस और धैर्य से काम लिया।
उसने बालक के फटे पेट को झरबेरी के कांटों से सिल दिया और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां पहुंची। बच्चे की हालत देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।
वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह हालत न होती।
इसलिए मुझे लौटकर गांव वालों को सब बताकर प्रायश्चित करना चाहिए। ऐसा निश्चय करके वह उस गांव में पहुंची जहां उसने दूध-दही बेचा था।
वह गली-गली जाकर अपने कुकर्म और उसके फलस्वरूप मिली सजा का वर्णन करती रही।
तब स्त्रियों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए और उस पर दया करके उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।
अनेक स्त्रियों से आशीर्वाद लेने के बाद जब वह पुनः झरबेरी के पेड़ के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि उसका पुत्र वहां जीवित पड़ा है।
तब उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना ब्राह्मण की हत्या के समान समझा और फिर कभी झूठ न बोलने की कसम खा ली।