हरछठ कथा | Harchat katha | हरछठ व्रत कथा | Harchat vrat katha

Published By: Bhakti Home
Published on: Friday, Aug 23, 2024
Last Updated: Saturday, Aug 24, 2024
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Harchat katha
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हरछठ कथा, हरछठ व्रत कथा (Harchat katha or Harchat vrat katha) को हल छठ (Hal chhath) कथा हल षष्ठी व्रत कथा (hal sashti vrat katha) के रूप में भी जाना जाता है। इसे हरछठ व्रत या हल छठ व्रत या हल षष्ठी व्रत के लिए पढ़ा जाता है। आईये जानते हैं क्या है हरछठ कथा।

हरछठ कथा | Harchat katha | हरछठ व्रत कथा | Harchat vrat katha

पौराणिक कथा के अनुसार, एक ग्वालिन गर्भवती थी। उसकी डिलीवरी का समय नजदीक था, 

लेकिन वह दूध और दही को बेचने चली गई ताकि वह खराब न हो जाए। 

कुछ दूर चलने के बाद उसे प्रसव पीड़ा हुई और उसने झरबेरी की ओट एक बच्चे को जन्म दिया।

उस दिन हल षष्ठी थी। कुछ देर आराम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़कर दूध-दही बेचने चली गई।

उसने गाय-भैंस के मिश्रित दूध को भैंस का दूध बताकर गांव वालों को धोखा दिया। इससे व्रत रखने वालों का व्रत टूट गया। 

इस पाप के कारण झरबेरी के पेड़ के नीचे लेटा उसका बच्चा किसान के हल से लग गया। 

दुखी किसान ने बच्चे के फटे पेट को झरबेरी के कांटों से सिल दिया और चला गया।

जब ग्वालिन वापस लौटी तो उसने बच्चे को ऐसी हालत में देखा और उसे अपना पाप याद आ गया। 

उसने तुरंत पश्चाताप किया और गाँव में घूम-घूम कर सबको अपने धोखे और इसके लिए मिली सज़ा के बारे में बताया। 

जब उसने सच बताया तो गाँव की सभी महिलाओं ने उसे माफ़ कर दिया और आशीर्वाद दिया। इस तरह जब ग्वालिन खेत में लौटी तो उसने देखा कि उसका मरा हुआ बेटा खेल रहा था।

 

हरछठ कथा - देवरानी और जेठानी 

एक समय की बात है कांशीपुरी में एक देवरानी और जेठानी रहती थी।

देवरानी का नाम तारा था और जेठानी का नाम विद्यावती था। 

अपने नाम के अनुसार तारा उग्र स्वभाव की थी और विद्यावती बहुत दयालु थी। 

एक दिन दोनों ने खीर बनाकर उसे ठंडा होने के लिए आंगन में रख दिया और अंदर बैठकर बातें करने लगीं। तभी दो कुत्तों ने खीर देख ली और उसे खाने लगे। 

अब आवाज सुनकर दोनों बाहर आईं और देखा कि कुत्ते उनकी खीर खा रहे हैं। 

विद्यावती ने फिर अपनी खीर का बचा हुआ हिस्सा कुत्ते के सामने डाल दिया और तारा ने दूसरे कुत्ते को एक कमरे में बंद करके पीटना शुरू कर दिया। 

किसी तरह वह कुत्ता अपनी जान बचाकर बाहर भागा। अगले दिन दोनों कुत्ते एक जगह मिलते हैं और एक-दूसरे का हालचाल पूछते हैं। 

इस पर विद्यावती की खीर खाने वाला कुत्ता कहता है कि वह महिला बहुत दयालु थी, उसने बची हुई खीर मुझे भी खाने को दी। 

भगवान करे कि जब मेरा दोबारा जन्म हो तो मैं उसी का बच्चा बनूं और उसकी अच्छे से सेवा करूं।

अब दूसरा कुत्ता कहता है कि मुझे भी उस स्त्री का बच्चा बनना चाहिए ताकि मैं उससे बदला ले सकूं। 

उस दिन हलषष्ठी व्रत था। तारा की पिटाई से वह कुत्ता बेदम होकर मर गया।

अगले हलषष्ठी व्रत के दिन तारा ने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के बाद अगले हलषष्ठी व्रत के दिन वह बच्चा मर गया।

इसी तरह तारा ने एक-एक करके पांच पुत्रों को जन्म दिया। उसका पुत्र एक वर्ष के बाद हलषष्ठी व्रत के दिन ही मर जाता था।

जिससे तारा दुखी हो गई और हलषष्ठी माता की प्रार्थना करने लगी। 

उसी रात तारा को सपने में वही कुत्ता दिखाई दिया जो उसकी पिटाई से मर गया था। 

कुत्ते ने सपने में तारा से कहा कि मैं तुमसे बदला लेने के लिए तुम्हारा पुत्र बनकर आ रहा हूं और मरने के बाद फिर आऊंगा।

जब तारा ने अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगी तो उस कुत्ते ने कहा कि तुम्हें हलषष्ठी व्रत करना चाहिए ताकि तुम्हें दीर्घायु पुत्र की प्राप्ति हो। 

स्वप्न में बताई गई विधि के अनुसार तारा ने अगली बार हलषष्ठी व्रत किया और माता से आशीर्वाद मांगा। 

हलषष्ठी माता की कृपा से तारा ने एक दीर्घायु बालक को जन्म दिया और सुखपूर्वक रहने लगी। इधर विद्यावती ने भी हलषष्ठी व्रत किया और माता की कृपा से एक सुन्दर और गुणवान पुत्र को जन्म दिया और सुखपूर्वक रहने लगी।

 

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