जन्माष्टमी व्रत कथा | Janmashtami vrat katha

Published By: Bhakti Home
Published on: Friday, Aug 23, 2024
Last Updated: Friday, Aug 23, 2024
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Janmashtami vrat katha
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जन्माष्टमी व्रत कथा (Janmashtami vrat katha) चमत्कारों और भगवान कृष्ण की जन्म से सम्बंधित महिमा से भरी है। आइए जानते हैं कि क्या है जन्माष्टमी व्रत कथा। 

जन्माष्टमी व्रत कथा - Janmashtami vrat katha - कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा

द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन का मथुरा पर शासन था। उसके अत्याचारी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी राजा से हुआ था।

शादी के बाद कंस अपनी बहन देवकी को रथ पे बिठाकर उसकी ससुराल ले जा रहा था।

रास्ते में आकाशवाणी हुई, "हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसके गर्भ से उत्पन्न आठवाँ बालक तेरा वध करेगा।" 

यह सुनकर कंस ने वसुदेव को मारने की तैयारी की।

तब देवकी ने उससे विनम्रतापूर्वक कहा, "मैं अपने गर्भ से उत्पन्न बालक को तेरे पास लाऊँगी। अपने बहनोई को मारने से क्या लाभ?"

कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस आ गया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया।

 

वसुदेव और देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और कंस ने सातों को जन्म लेते ही मार डाला। अब आठवां बच्चा पैदा होने वाला था। उन्हें कारागार में कड़ी निगरानी में रखा गया। 

उसी समय नंद की पत्नी यशोदा भी एक बच्चे को जन्म देने वाली थी। वसुदेव और देवकी के दयनीय जीवन को देखकर उसने आठवें बच्चे की रक्षा के लिए एक योजना बनाई। 

जिस समय वसुदेव और देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया, उसी समय संयोग से यशोदा के घर एक पुत्री का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं बल्कि 'माया' थी।

 

अचानक उस कोठरी में प्रकाश हुआ जहाँ देवकी और वसुदेव कैद थे और चतुर्भुज भगवान शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए उनके सामने प्रकट हुए। 

वे दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं फिर से नवजात शिशु का रूप धारण करता हूँ।

मुझे अभी अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन भेज दो और वहां जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। 

अभी वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता मत करो। सजग पहरेदार सो जाएंगे, कारागार के द्वार अपने आप खुल जाएंगे और उफनती यमुना तुम्हें पार जाने का रास्ता दे देगी।'


वसुदेव नवजात शिशु श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर कारागार से निकल पड़े और विशाल यमुना पार करके नंदजी के घर पहुंचे। 

वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के पास सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागार के द्वार पहले की भांति बंद हो गए।

 

जब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव और देवकी ने एक बालक को जन्म दिया है।

वह कारागार में गया और देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर जमीन पर पटकने लगा, 

लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से बोली- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला वृंदावन पहुंच गया है। वह शीघ्र ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।' 

 

यही है कृष्ण जन्म की कथा। चलिए अब सब लोग श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी  पाठ करते हैं और भगवन श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं 

 

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी 

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
हे नाथ नारायण…॥
पितु मात स्वामी, सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥


॥ श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी…॥

बंदी गृह के, तुम अवतारी
कही जन्मे, कही पले मुरारी
किसी के जाये, किसी के कहाये
है अद्भुद, हर बात तिहारी ॥
है अद्भुद, हर बात तिहारी ॥
गोकुल में चमके, मथुरा के तारे
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
पितु मात स्वामी, सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

अधर पे बंशी, ह्रदय में राधे
बट गए दोनों में, आधे आधे
हे राधा नागर, हे भक्त वत्सल
सदैव भक्तों के, काम साधे ॥
सदैव भक्तों के, काम साधे ॥
वही गए वही, गए वही गए
जहाँ गए पुकारे
हे नाथ नारायण वासुदेवा॥

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
पितु मात स्वामी सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

गीता में उपदेश सुनाया
धर्म युद्ध को धर्म बताया
कर्म तू कर मत रख फल की इच्छा
यह सन्देश तुम्ही से पाया
अमर है गीता के बोल सारे
हे नाथ नारायण वासुदेवा॥

श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
पितु मात स्वामी सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बंधू सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देवा
॥ श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी…॥

राधे कृष्णा राधे कृष्णा
राधे राधे कृष्णा कृष्णा॥
राधे कृष्णा राधे कृष्णा
राधे राधे कृष्णा कृष्णा॥

हरी बोल, हरी बोल,
हरी बोल, हरी बोल॥

 

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