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जया एकादशी व्रत कथा | Jaya ekadashi vrat katha

Published By: bhaktihome
Published on: Thursday, August 29, 2024
Last Updated: Thursday, August 29, 2024
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Table of contents

जया एकादशी व्रत कथा, Jaya ekadashi vrat katha - माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। 

ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने वाले सभी भक्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। जया एकादशी के दिन कपड़े, धन, भोजन और आवश्यक वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है। 

जया एकादशी को दक्षिण भारत में 'भूमि एकादशी' और 'भीष्म एकादशी' के नाम से जाना जाता है

जया एकादशी व्रत कथा - Jaya ekadashi vrat katha 

इन्द्र के दरबार में उत्सव चल रहा था। उत्सव में देवता, ऋषि, दिव्य पुरुष सभी उपस्थित थे। 

उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इन गंधर्वों में माल्यवान नामक गंधर्व था जो बहुत मधुर स्वर में गाता था।

उसका स्वर उसके रूप के समान ही मधुर था। दूसरी ओर गंधर्व कन्याओं में पुष्यवती नामक एक सुंदर नर्तकी भी थी। 

पुष्यवती और माल्यवान एक दूसरे को देखकर अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय और ताल से भटक जाते हैं। 

उनके इस कृत्य से देवराज इन्द्र क्रोधित हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएंगे और मृत्युलोक में पिशाचों की तरह जीवन व्यतीत करेंगे।

श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और कष्ट भोगने लगे। पिशाच जीवन बहुत कष्टमय था। दोनों बहुत दुखी थे। 

एक बार माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था। दोनों ने पूरे दिन में केवल एक बार फल खाया था। रात में वे भगवान से प्रार्थना कर रहे थे और अपने किए पर पश्चाताप कर रहे थे। 

इसके बाद सुबह होते-होते दोनों की मौत हो गई। 

अनजाने में ही उन्होंने एकादशी का व्रत कर लिया था और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे वापस स्वर्ग चले गए।

जया एकादशी व्रत Vidhi | Jaya ekadashi vrat vidhi

  1. एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। 
  2. इसके बाद पूजा में धूप, दीप, फल और पंचामृत जरूर शामिल करें। 
  3. इस दिन की पूजा में भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण अवतार की पूजा करने की बात कही गई है। 
  4. एकादशी व्रत में रात्रि जागरण करना बहुत शुभ होता है। 
  5. ऐसे में रात्रि जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन गाएं। 
  6. इसके बाद अगले दिन द्वादशी के दिन किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं। 
  7. उन्हें दान-दक्षिणा दें और उसके बाद ही अपना व्रत खोलें।
  8.  इसके अलावा इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना भी अनिवार्य होता है।

 

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