Pahle navratri ki katha, पहले नवरात्रि की कथा: नवरात्रि का पर्व देवी दुर्गा की आराधना का विशेष अवसर है, जिसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा होती है। यह दिन विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि के आरंभ का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन देवी ने भगवान शिव के साथ विवाह के लिए हिमालय पर्वत पर तप किया था।
Pahle navratri ki katha | shailputri mata ki katha | शैलपुत्री माता की कथा
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री, देवी दुर्गा का पहला रूप हैं और इनकी उपासना करने से भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह कथा माता की महानता और उनकी शक्ति को प्रकट करती है।
शैलपुत्री माता की कथा
माता पार्वती का जन्म:
माता पार्वती, हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती की पुत्री थीं। उनके जन्म के समय ही यह भविष्यवाणी हुई थी कि वे एक दिन भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करेंगी। माता पार्वती बचपन से ही भगवान शिव की आराधना करती थीं।
भगवान शिव के प्रति प्रेम:
जब माता पार्वती युवा हुईं, तो उन्होंने भगवान शिव के प्रति अपने अटूट प्रेम को अनुभव किया। माता ने यह निर्णय लिया कि वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करेंगी। इसके लिए उन्होंने कठोर तप करने का निश्चय किया।
तपस्या का आरंभ:
माता पार्वती ने हिमालय में जाकर अपनी तपस्या शुरू की। उन्होंने कठोर व्रत रखा, फल-फूल का सेवन किया और केवल जल पीकर तप किया। उनकी तपस्या के दौरान देवताओं ने देखा कि पार्वती की भक्ति और समर्पण अद्वितीय है। उन्होंने माता की तपस्या को देखकर भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे माता को दर्शन दें।
भगवान शिव का दर्शन:
भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या को देखकर उन्हें दर्शन दिए। वे उनकी भक्ति से प्रभावित हुए और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए आए। माता ने भगवान शिव से कहा, "हे प्रभु, मैं आपके बिना अपनी आत्मा को अधूरा महसूस करती हूँ। मैं आपको अपने पति के रूप में पाना चाहती हूँ।" भगवान शिव ने माता की इच्छा को स्वीकार किया और कहा कि उन्हें कष्ट सहना होगा।
विवाह की तैयारी:
भगवान शिव ने माता को यह बताया कि वे उन्हें अपनी पत्नी बनाने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए माता को और भी तप करना होगा। माता ने अपनी तपस्या को जारी रखा और इस बार उन्होंने केवल फल और फूल का सेवन किया।
विवाह:
माता पार्वती की तपस्या को देखकर भगवान शिव ने एक दिन हिमालय आकर उनके पिता हिमवान से विवाह का प्रस्ताव रखा। माता के पिता ने खुशी-खुशी इस विवाह के लिए सहमति दी। माता का विवाह बहुत धूमधाम से हुआ। सभी देवताओं ने इस विवाह में भाग लिया और भगवान शिव एवं माता पार्वती ने एक साथ जीवन व्यतीत करने का संकल्प लिया।
उपासना विधि
नवरात्रि के पहले दिन विशेष रूप से शैलपुत्री माता की पूजा की जाती है। भक्तगण व्रत रखते हैं, देवी की आरती करते हैं और उनके चरणों में श्रद्धा से नमन करते हैं। इस दिन लाल या पीले वस्त्र पहनकर माता को पुष्प अर्पित करना और दुर्गा चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है।
इस प्रकार नवरात्रि के पहले दिन की कथा माता शैलपुत्री के प्रति भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करती है, जो हर भक्त के हृदय में शक्ति का संचार करती है।
निष्कर्ष
पहले नवरात्रि की कथा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें आंतरिक शक्ति और समर्पण का पाठ पढ़ाती है। इस नवरात्रि, माता शैलपुत्री की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें।