देवउठनी एकादशी पूजा विधि | Dev uthani ekadashi puja vidhi

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Published on: Sunday, Nov 10, 2024
Last Updated: Sunday, Nov 10, 2024
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देवउठनी एकादशी पूजा विधि | Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi in Hindi
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देव उठनी एकादशी पूजा विधि, Dev uthani ekadashi puja vidhi - देव उठनी एकादशी को हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण एकादशी माना गया है। इसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के योग-निद्रा (चातुर्मास) के बाद जागते हैं, और इसी के साथ सभी शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत का समय भी आता है।

देव उठनी एकादशी पूजा विधि | Dev uthani ekadashi puja vidhi | Step-by-Step Puja Vidhi

देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करने का विशेष महत्व है, जो भक्तों को समृद्धि, सुख और शांति प्रदान करता है। इस पूजा में भगवान विष्णु के साथ तुलसी माता का भी पूजन किया जाता है, जो विष्णुजी को अत्यंत प्रिय है।

देव उठनी एकादशी पूजा विधि (Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi) को भगवान विष्णु के जागरण और विवाह की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पर देव उठनी एकादशी की पूजा विधि हिंदी में दी गई है:

1. स्नान और संकल्प

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को साफ करें और एक लकड़ी की चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र रखें।
  • संकल्प करें कि आप श्रद्धा और भक्ति के साथ देव उठनी एकादशी का व्रत और पूजा करेंगे।

2. भगवान विष्णु और तुलसी माता की स्थापना

  • एक स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
  • पास में ही तुलसी का पौधा रखें। तुलसी माता को लक्ष्मी का रूप मानकर उनकी पूजा करें।

3. पूजन सामग्री

  • कलश, रोली, चंदन, दीपक, धूप, फल, फूल, पंचामृत, गंगाजल, और मिठाई रखें।
  • तुलसी दल (तुलसी के पत्ते) का विशेष महत्व होता है, इसे जरूर शामिल करें।

4. दीप प्रज्वलन और आह्वान

  • दीपक जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आह्वान करें।
  • भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए निम्न ध्यान मंत्र का जाप करें:

ॐ नारायणाय नमः

5. स्नान और अभिषेक

  • भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएँ।
  • इसके बाद पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी) से अभिषेक करें और फिर से गंगाजल से स्नान कराएँ।
  • मंत्र:

ॐ श्री विष्णवे नमः

6. वस्त्र और आभूषण अर्पित करें

  • भगवान विष्णु को नए वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। यह प्रतीकात्मक है और भक्तिभाव से किया जाता है।

7. पूजा में तुलसी अर्पण करें

  • तुलसी माता को भगवान विष्णु के चरणों में अर्पित करें। तुलसी दल का बहुत महत्व होता है, क्योंकि यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
  • मंत्र:

तुलस्यै नमः

8. फल, फूल और मिष्ठान्न अर्पित करें

  • भगवान विष्णु को फूल, फल और मिष्ठान्न (मिठाई) अर्पित करें।
  • मंत्र:

ॐ विष्णवे नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।

9. आरती करें

  • भगवान विष्णु की आरती करें। आप "ॐ जय जगदीश हरे" आरती कर सकते हैं।
  • घी का दीपक और कपूर जलाकर आरती समाप्त करें।

10. प्रसाद वितरण

  • आरती के बाद प्रसाद वितरित करें और सभी परिजनों को प्रसाद दें।

11. व्रत कथा सुनें

  • देव उठनी एकादशी की कथा अवश्य सुनें या पढ़ें। कथा सुनने से व्रत का महत्व और पुण्य फल मिलता है।

12. व्रत समाप्ति

  • अगले दिन द्वादशी पर व्रत का पारण करें। किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को भोजन कराकर व्रत पूरा करें।

 

विशेष मंत्र (Mantras)

भगवान विष्णु का महामंत्र

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

श्रीहरि के लिए जागरण मंत्र

जाग्रतं जाग्रतं सुदर्शन चक्राय नमः। 

तुलसी पूजन मंत्र

तुलस्यै नमो नमः।

पूजा का महत्व (Importance)

देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के उठने का पर्व मनाया जाता है, जो शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है। इसी दिन से विवाह, गृह प्रवेश, आदि मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जाती है।

 

ओम जय जगदीश हरे आरती (Om Jai Jagdish Hare Aarti)

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
 

तुलसी आरती (Tulsi Aarti)

तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।

धन तुलसी पूरण तप कीनो,
शालिग्राम बनी पटरानी ।
जाके पत्र मंजरी कोमल,
श्रीपति कमल चरण लपटानी ॥

तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।

धूप-दीप-नवैद्य आरती,
पुष्पन की वर्षा बरसानी ।
छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,
बिन तुलसी हरि एक ना मानी ॥

तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।

सभी सखी मैया तेरो यश गावें,
भक्तिदान दीजै महारानी।
नमो-नमो तुलसी महारानी,
तुलसी महारानी नमो-नमो ॥

तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।


 

 

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