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kalash sthapana kaise kare | घट स्थापना कैसे करें

Published By: bhaktihome
Published on: Monday, September 30, 2024
Last Updated: Monday, September 30, 2024
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कलश स्थापना कैसे करें | kalash sthapana kaise kare | घट स्थापना कैसे करें | Ghat sthapna kaise karen
Table of contents

नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। यहाँ हम ये बताने जा रहे हैं कि कलश स्थापना कैसे करें (kalash sthapana kaise kare) या घट स्थापना कैसे करें (Ghat sthapna kaise karen), कलश स्थापना में क्या सामग्री चाहिए, कलश स्थापना के नियम क्या हैं और बहुत कुछ। 

कलश स्थापना कैसे करें | kalash sthapana kaise kare | घट स्थापना कैसे करें | Ghat sthapna kaise karen 

कलश को देवी मां का प्रतीक माना जाता है और इसमें संपूर्ण ब्रह्मांड का वास माना जाता है। कलश स्थापना के जरिए देवी मां को घर में आमंत्रित किया जाता है। मान्यता है कि कलश में देवी मां का वास होता है और पूरे नवरात्रि में इसी कलश के जरिए देवी मां की पूजा की जाती है।

हिंदू धर्म में नवरात्रि के 9 दिनों को बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, साल में 4 नवरात्रि होती हैं लेकिन मुख्य रूप से 2 नवरात्रि मनाई जाती हैं, जिनमें से एक शारदीय नवरात्रि और दूसरी चैत्र नवरात्रि होती है।

चैत्र नवरात्रि हो या शारदीय नवरात्रि, इस पावन अवसर की शुरुआत घटस्थापना से होती है। धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान जगत जननी अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए धरती पर आती हैं। इस दौरान जगत जननी मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करने से सभी तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है। साथ ही घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। 

अगर आप भी अपने जीवन के दुखों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो नवरात्रि के दौरान विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करें और पहले दिन घटस्थापना (कलश स्थापना) करें।

घट स्थापना सामग्री | कलश स्थापना सामग्री 

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना (कलश स्थापना) की जाती है। आइए जानते हैं कलश स्थापना के लिए क्या सामग्री चाहिए होगी।

  1. कलश, कलश पर बांधने के लिए मौली
  2. आम के पत्ते का पल्लव (जिसमें 5 या 7 पत्ते हों)
  3. कलश में डालने के लिए रोली, गंगाजल, सिक्का, गेहूं या अक्षत
  4. कलश के अलावा इन दिनों जौ भी बोना चाहिए। जिसके लिए मिट्टी का एक बड़ा बर्तन
  5. मिट्टी, जौ, कलावा

 

कलश स्थापना विधि | Kalash sthapana vidhi | घट स्थापना विधि | Ghat sthapana vidhi

नवरात्रि पूजा कलश स्थापना विधि (Kalash sthapana vidhi) घट स्थापना विधि (Ghat sthapana vidhi) इस प्रकार है।

  1. कलश स्थापना के लिए स्वच्छ और पवित्र स्थान चुनें और यह स्थान पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। 
  2. कलश स्थापित करने से पहले उस पर एक स्वास्तिक आवश्यक रूप से बना ले
  3. कलश स्थापना के समय घड़े में अक्षत (चावल), गेहूं, जौ, मूंग, चना, सिक्के, कुछ पत्ते, गंगाजल, नारियल, कुमकुम, रोली डालकर उसके ऊपर नारियल रखें। 
  4. घड़े के मुंह पर मौली बांधें और कुमकुम से तिलक करें और घड़े को चौकी पर रखें। 
  5. रोली और चावल से अष्टदल कमल बनाकर कलश को सजाएं। 
  6. देवी मां के मंत्रों का जाप करें और कलश में जल चढ़ाएं और धूपबत्ती जलाएं।

 

कलश स्थापना के नियम | Kalash Sthapana Ke Niyam | घट स्थापना के नियम | Ghat Sthapana Ke Niyam

  1. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते समय पवित्र रहें। 
  2. कलश स्थापना के दौरान मन में किसी भी तरह की नकारात्मक भावना नहीं होनी चाहिए। 
  3. पूरे नवरात्रि के दौरान विधि-विधान से कलश की पूजा करें। 
  4. शारदीय नवरात्रि के दिन नवमी तिथि को पूजा संपन्न कर कलश का विसर्जन करें।

 

कलश स्थापना का महत्व 

  1. कलश में देवी दुर्गा का वास माना जाता है। कलश स्थापना करने से लोगों का मन शांत होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। 
  2. कलश स्थापना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और परिवार के सदस्यों पर दुर्गा माता की कृपा हमेशा बनी रहती है। 
  3. इसके अलावा कलश स्थापना से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 

 

कलश स्थापना मंत्र | Kalash Sthapana mantra | घट स्थापना मंत्र | Ghat Sthapana mantra

देवी-देवताओं का आह्वान करने के लिए नीचे दिये गये कलश स्थापना मंत्र (Kalash Sthapana mantra) या घट स्थापना मंत्र (Ghat Sthapana mantra) का जाप जरूर करें। 

कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रुद्रः समाश्रितः ।

मूले त्वस्य स्थतो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥ 1 ॥ 

कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुंधराः ।

अर्जुनी गोमती चैव चंद्रभागा सरस्वती ॥ 2 ॥ 

कावेरी कृष्णवेणी च गंगा चैव महानदी ।

ताप्ती गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥ 3 ॥ 

नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः ।

पृथिव्यां यान तीर्थानि कलशस्तानि तानि वैः ॥ 4 ॥ 

सर्वे समुद्राः सरितस्तीथर्यानि जलदा नदाः ।

आयान्तु मम कामस्य दुरितक्षयकारकाः ॥ 5 ॥ 

ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥

अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।

अत्र गायत्री सावित्री शांति पुष्टिकरी तथा ॥ 6 ॥ 

आयान्तु देवपूजार्थं दुरित क्षय कारकाः ।

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ॥ 7 ॥ 

नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन्‌ सन्निधिं कुरु ।

नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय सुश्वेत हाराय सुमंगलाय ।

सुपाश हस्ताय झषा सनाय जला धनाथाय नमो नमस्ते ॥ 8 ॥ 

ॐ अपां पतये वरुणाय नमः ।

ॐ वरुणा द्यावाहित देवताभ्यो नमः॥ 9॥ 

 

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