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पितृ स्तोत्र - पाठ, अर्थ और लाभ | Pitra stotra in hindi

Published By: Bhakti Home
Published on: Sunday, Sep 15, 2024
Last Updated: Sunday, Sep 15, 2024
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Pitra Stotra in Hindi
Table of contents

पितृ स्तोत्र हिंदी में, पितृ स्तोत्र इन हिंदी, Pitra stotra in hindi: पितृ स्तोत्र का पाठ पूर्वजों के लिए किया जाता है। खासकर अगर पितृ पक्ष के दौरान पितृ स्तोत्र का पाठ किया जाए तो पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। घर में सुख-समृद्धि आने लगती है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष है उन्हें रोजाना इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। 

मार्कंडेय पुराण में इस स्तोत्र का उल्लेख है। जो लोग रोजाना इस स्तोत्र का पाठ करने में असमर्थ हैं वे चतुर्दशी और अमावस्या के दिन इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। पुराणों में इस दिन को पितरों के लिए खास माना गया है।

 

पितृ स्तोत्र हिंदी में (Pitra Stotra in Hindi) | पितृ स्तोत्र इन हिंदी

अगर आप संस्कृत  में मन्त्र या पाठ नहीं कर सकते तो इसकी जगह पे हिंदी में दिया हुआ अर्थ भी बोल सकते हैं। दोनों ही तरीके से कर सकते हैं। सभी प्रकार के पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान पितृ स्त्रोत का पाठ अवश्य करें।

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।1।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ – मैं उन पितरों को सदैव प्रणाम करता हूँ जो सबके द्वारा पूजित हैं, निराकार हैं, अत्यंत तेजस्वी हैं, ध्यानस्थ हैं और दिव्य दृष्टि वाले हैं।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् । 2 ।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ   – मैं उन पितरों को प्रणाम करता हूँ जो इन्द्र, दक्ष, मारीच, सप्तर्षि आदि देवताओं के नेता हैं तथा जो सभी कामनाओं को पूर्ण करते हैं।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ  – मैं उन समस्त पितरों को प्रणाम करता हूँ जो मनु आदि राजाओं, ऋषियों, सूर्य और चन्द्रमा के भी, जल और समुद्र में भी अग्रणी हैं।

 

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: । 4।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ – मैं हाथ जोड़कर उन पूर्वजों को नमन करता हूँ जो तारों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश, स्वर्ग और यहाँ तक कि पृथ्वी के भी नेता हैं।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: । 5।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ  – मैं उन पितरों को हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ जो ऋषियों के रचयिता हैं, जो सम्पूर्ण लोकों द्वारा पूजित हैं और जो सदैव अक्षय फल प्रदान करने वाले हैं।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: । 6।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ – मैं प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण और योगेश्वर रूपी अपने पूर्वजों को सदैव हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

 

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे । 7।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ – सात लोकों में स्थित सात पितरों को नमस्कार है। योगदृष्टि से संपन्न स्वयंभू ब्रह्माजी को मैं नमस्कार करता हूँ।

 

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् । 8।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ  – मैं चन्द्रमा के आधार पर स्थापित तथा योग के स्वरूप पितरों को प्रणाम करता हूँ। मैं समस्त जगत के पिता सोम को भी प्रणाम करता हूँ।

 

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: । 9 ।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ  – मैं अग्नि रूप अन्य पितरों को प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत अग्नि और सोम से बना है।

 

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय: ।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: । ।


तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस: ।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज । 10।


Pitra stotra - पितृ स्तोत्र हिन्दी अर्थ – जो पितरों का स्थान प्रकाश में है, जो चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दिखाई देते हैं तथा जो जगत् के स्वरूप और ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सब योगी पितरों को मैं एकाग्र मन से प्रणाम करता हूँ। उन्हें बार-बार नमस्कार करता हूँ। जो पितर अपना भोजन स्वयं करते हैं, वे मुझ पर प्रसन्न हों।

 

पितृ स्तोत्र के लाभ

माना जाता है कि पितृ स्तोत्र का जाप या पाठ करने से पूर्वजों और अनुष्ठान करने वाले जीवों दोनों को कई लाभ मिलते हैं। पितृ स्तोत्र के लाभ नीचे दिए गए हैं:

  1. पितृ स्तोत्र से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।
  2. पितृ कर्म की शुद्धि होती है।
  3. पैतृक इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  4. सुरक्षा और मार्गदर्शन मिलता है।
  5. पैतृक संबंध अच्छे होते हैं।
  6. पैतृक श्रापों से सुरक्षा मिलती है
  7. समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।
  8. आध्यात्मिक विकास और मुक्ति (मोक्ष)

 

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