Santan saptami 2024 kab ki hai, जानें सही तिथि, कथा, पूजा सामग्री और विधि

Published By: Bhakti Home
Published on: Sunday, Sep 8, 2024
Last Updated: Sunday, Sep 8, 2024
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Santan Saptami 2024, Santan Saptami 2024 kab ki hai: हिंदू धर्म में संतान सप्तमी व्रत का विशेष महत्व है। माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख समृद्धि के लिए यह व्रत रखती हैं। 

Santan Saptami 2024 | संतान सप्तमी 2024

यह व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती और श्री गणेश की पूजा का विधान है। 

संतान सप्तमी को ललिता सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। कब है संतान सप्तमी या ललिता सप्तमी, जानें सही तिथि, कथा, पूजा सामग्री और विधि।

 

Santan saptami kab hai | संतान सप्तमी कब है

संतान सप्तमी कब है - हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद की सप्तमी तिथि 09 सितंबर को रात 09:53 बजे शुरू होगी और 10 सितंबर को रात 11:11 बजे समाप्त होगी। 

संतान सप्तमी 10 सितंबर 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि सप्तमी तिथि तो 9 सितंबर की शाम को आएगी, 

लेकिन उदया तिथि के अनुसार संतान सप्तमी व्रत 10 सितंबर को रखा जाएगा, क्योंकि यह तिथि 10 सितंबर को सूर्योदय के समय भी रहेगी।

 

संतान सप्तमी पूजन मुहूर्त | Santan Saptami 2024 Puja time

द्रिक पंचांग के अनुसार संतान सप्तमी या ललिता सप्तमी के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:52 बजे से दोपहर 12:42 बजे तक रहेगा।

संतान सप्तमी पूजा सामग्री 

  • इस पूजा में भगवान शिव की पूजा परिवार सहित की जाती है। भगवान शिव का सपरिवार चित्र।
  • इसके अलावा लकड़ी की चौकी, कलश, अक्षत, रोली, मौली, केले का पत्ता, सफेद कपड़ा, फल, फूल, आम के पत्ते, 
  • भोग के लिए सात पूए या मीठी पूरियां
  • कपूर, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान, चांदी का कंगन या रेशमी धागा पूजा में अवश्य शामिल करें।

 

संतान सप्तमी पूजा विधि

  • संतान सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान शिव और माता गौरी के सामने माथा टेककर व्रत का संकल्प लें।
  • अब अपना व्रत आरंभ करें और व्रत रखते हुए पवित्रता के साथ पूजा के लिए प्रसाद तैयार करें। इसके लिए खीर-पूरी और गुड़ की 7 पुड़िया या 7 मीठी पूरियां तैयार करें।
  • यह पूजा दोपहर तक कर लेनी चाहिए। पूजा के लिए जमीन पर चौक बनाएं और उस पर चौकी रखकर उस पर शंकर पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
  • अब कलश स्थापित करें, उसमें आप के पत्ते सहित एक नारियल रखें। एक दीपक जलाएं और आरती की थाली तैयार करें जिसमें हल्दी, कुमकुम, चावल, कपूर, फूल, कलावा और अन्य सामग्री रखें।
  • अब केले के पत्ते में 7 मीठी पूरियां बांधकर पूजा में रखें और पूजा करते समय भगवान शिव को कलावा चढ़ाएं और संतान की रक्षा और उन्नति की प्रार्थना करें।
  • पूजा करते समय हाथ में सूती डोरी या चांदी की संतान सप्तमी चूड़ी पहननी चाहिए। 
  • संतान प्राप्ति की कामना के लिए यह व्रत माता-पिता दोनों द्वारा किया जा सकता है। 
  • पूजा के बाद धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें और संतान सप्तमी कथा पढ़ें।
  • व्रत खोलने के लिए पूजा में चढ़ाई गई सात मीठी पूरियां या पुए खाकर अपना व्रत खोलें।

 

संतान सप्तमी व्रत कथा | santan saptami vrat katha

एक बार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि एक बार लोमश ऋषि मथुरा आए थे। मेरे माता-पिता देवकी और वसुदेव ने उनकी भक्तिपूर्वक सेवा की, तब ऋषि ने उन्हें कंस द्वारा मारे गए अपने पुत्रों के शोक से उबरने के लिए आदेश दिया- हे देवकी! कंस ने तुम्हारे कई पुत्रों को जन्म लेते ही मार डाला है और तुम्हें पुत्र वियोग का दुःख दिया है। 

इस दुःख से मुक्ति के लिए तुम्हें 'संतान सप्तमी' का व्रत करना चाहिए। राजा नहुष की रानी चंद्रमुखी ने भी यह व्रत किया था। तब उसके पुत्र भी नहीं मरे। यह व्रत तुम्हें भी पुत्र वियोग के दुःख से मुक्ति दिलाएगा।

देवकी ने पूछा- हे देव! कृपया मुझे व्रत की पूरी विधि बताएं ताकि मैं नियमानुसार व्रत पूरा कर सकूं। लोमश ऋषि ने उन्हें व्रत की पूजा विधि बताई और व्रत की कथा भी सुनाई।

नहुष अयोध्यापुरी के प्रतापी राजा थे। उनकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। उनके राज्य में विष्णुदत्त नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम रूपवती था। रानी चंद्रमुखी और रूपवती का एक-दूसरे के प्रति गहरा प्रेम था। 

एक दिन वे दोनों सरयू में स्नान करने गईं। वहां अन्य स्त्रियां भी स्नान कर रही थीं। उन स्त्रियों ने पार्वती-शिव की मूर्तियां बनाईं और विधि-विधान से उनका पूजन किया। तब रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने उन स्त्रियों से पूजन का नाम और विधि पूछी।

उनमें से एक स्त्री बोली- हमने पार्वती के साथ शिव की पूजा की है। हमने भगवान शिव का धागा बांधकर प्रतिज्ञा ली है कि जब तक हम जीवित रहेंगी, इस व्रत को करती रहेंगी। यह 'मुक्ताभरण व्रत' सुख और संतान देने वाला है।

उस व्रत के बारे में सुनकर उन दोनों सखियों ने भी जीवनपर्यंत इस व्रत को करने का संकल्प लिया और भगवान शिव के नाम का धागा बांधा। लेकिन घर पहुंचकर वे अपना व्रत भूल गईं। परिणामस्वरूप मृत्यु के बाद रानी ने बंदर की योनि में और ब्राह्मणी ने मुर्गी की योनि में जन्म लिया।

कुछ समय बाद दोनों पशु योनि से निकलकर पुनः मनुष्य योनि में आईं। चन्द्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनी तथा रूपवती ने पुनः ब्राह्मण के घर जन्म लिया। इस जन्म में रानी का नाम ईश्वरी तथा ब्राह्मणी का नाम भूषणा था। 

भूषणा का विवाह राजपुरोहित अग्निमुखी से हुआ था। इस जन्म में भी दोनों में प्रेम हो गया। व्रत भूल जाने के कारण रानी इस जन्म में भी संतान सुख से वंचित रही।

वयस्क होने पर उसने एक मूक-बधिर पुत्र को जन्म दिया, किन्तु वह भी नौ वर्ष की आयु में मर गया। भूषणा ने व्रत को याद रखा था। अतः उसके गर्भ से आठ सुन्दर तथा स्वस्थ पुत्रों ने जन्म लिया। एक दिन भूषणा पुत्र वियोग में अपनी संवेदना प्रकट करने के लिए रानी ईश्वरी से मिलने गई। 

उसे देखते ही रानी के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। उसने भूषणा को विदा कर दिया तथा अपने पुत्रों को भोजन के लिए बुलाया तथा भोजन में विष मिला दिया। किन्तु भूषणा के व्रत के प्रभाव से उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। 

इससे रानी और भी अधिक क्रोधित हो गई। उसने अपनी सेविकाओं को आदेश दिया कि भूषणा के पुत्रों को पूजा के बहाने यमुना तट पर ले जाकर गहरे जल में धकेल दो। 

परंतु भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से इस बार भी भूषणा के बच्चे व्रत के प्रभाव से बच गए। फलस्वरूप रानी ने जल्लादों को बुलाकर ब्राह्मण बालकों को वध स्थल पर ले जाकर मार डालने का आदेश दिया, परंतु जल्लादों के भरसक प्रयास के बावजूद भी बालकों को नहीं मारा जा सका। 

यह समाचार सुनकर रानी को आश्चर्य हुआ। उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताई और फिर उससे क्षमा मांगते हुए पूछा- तुम्हारे बच्चे क्यों नहीं मरे?

भूषणा बोली- क्या तुम्हें अपना पिछला जन्म याद नहीं है? रानी ने आश्चर्य से कहा- नहीं, मुझे कुछ भी याद नहीं है।

तब उसने कहा- सुनो, पिछले जन्म में तुम राजा नहुष की रानी थी और मैं तुम्हारी सखी थी। 

हम दोनों ने एक बार भगवान शिव का डोरा बांधकर संकल्प किया था कि हम जीवन भर संतान सप्तमी का व्रत रखेंगे। 

परन्तु दुर्भाग्यवश हम भूल गए और व्रत की उपेक्षा करने के कारण हम भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म लेकर पुनः मनुष्य योनि को प्राप्त हुए हैं। अब मुझे वह व्रत याद आया तो मैंने उसका पालन किया। 

उसके प्रभाव से आप चाहकर भी मेरे पुत्रों को नहीं मार सके।

यह सब सुनकर रानी ईश्वरी ने भी संतान सुख देने वाले इस मुक्ताभरण व्रत का पालन किया। 

तब व्रत के प्रभाव से रानी पुनः गर्भवती हुई और उसने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। तब से यह व्रत पुत्र प्राप्ति तथा संतान की रक्षा के लिए प्रचलित है।

 

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