Ahoi ashtami ki katha, ahoi mata ki kahani, ahoi mata ki katha, अहोई अष्टमी की कथा, अहोई माता की कहानी, अहोई माता की कथा - अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं। यह व्रत हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत में अहोई माता की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जो माताएं अहोई अष्टमी व्रत का विधि-विधान से पालन करती हैं, उनके बच्चे जीवन में हमेशा सुखी और समृद्ध रहते हैं। साथ ही उन्हें स्वस्थ और लंबी आयु भी प्राप्त होती है। इस दिन अहोई माता की पूजा के साथ-साथ साही और उसकी संतान की भी पूजा करनी चाहिए। आइए आपको अहोई अष्टमी की व्रत कथा के बारे में बताते हैं।
अहोई माता की कहानी, अहोई माता की कथा | Ahoi mata ki kahani, Ahoi mata ki katha
अहोई अष्टमी की कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे थे।
दिवाली से पहले साहूकार की पत्नी घर की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी लेने खदान पर गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।
संयोग से उसी स्थान पर साही का मांद था। अनजाने में कुदाल साही के बच्चों पर लग गई और बच्चे मर गए। अपने हाथों से किए गए इस पाप के कारण साहूकार की पत्नी बहुत दुखी हुई, लेकिन अब वह क्या कर सकती थी?
इसलिए वह विलाप करती हुई और पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। लेकिन कुछ दिनों के बाद साहूकार के बेटे की मृत्यु हो गई। फिर इसके बाद उसके दूसरे, तीसरे और इस तरह एक वर्ष के भीतर उसके सभी बेटे अचानक मर गए।
साहूकार की पत्नी बहुत दुखी हुई। एक दिन उसने अपने पड़ोस की महिलाओं को अपने दुख का कारण बताया और कहा कि उसने कभी जानबूझकर किसी का बुरा नहीं किया।
लेकिन हां, एक बार उससे अनजाने में एक पाप जरूर हुआ था। उसने महिलाओं से कहा कि एक बार वह मिट्टी खोदने खदान पर गई थी, जहां उसने एक सेह के बच्चे को मार दिया था और शायद इसी कारण मेरे सातों बेटे मर गए।
यह सुनकर पड़ोस की एक वृद्ध महिला ने उससे कहा कि ऐसा कहने से तुम्हें पश्चाताप हो गया है और तुम्हारा आधा पाप स्वयं ही नष्ट हो गया है।
अब तुम एक काम करो, उसी अष्टमी तिथि को भगवती माता की शरण में जाओ, सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करो और क्षमा भी मांगो। भगवान की कृपा से तुम्हारा पाप अवश्य ही धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने ठीक वैसा ही किया। वह प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को नियमित व्रत रखती थी और विधि-विधान से पूजा करती थी। इसके बाद उसे सात पुत्र प्राप्त हुए। कहा जाता है कि तभी से अहोई व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई। बोलो अहोई माता की जय!
अहोई अष्टमी पर गणेश जी की कथा (Ahoi Ashtami Ganesh Ji Ki Katha) | Ahoi ashtami ki katha | अहोई अष्टमी की कथा
एक बार की बात है, भगवान गणेश एक चम्मच में चुटकी भर चावल और दूध लेकर घूम रहे थे और किसी से खीर बनाने के लिए कह रहे थे. लेकिन जो भी खीर बनाने के लिए थोड़ी सी सामग्री देखता, वह मना कर देता.
तभी एक बुढ़िया बोली- बेटा, मैं तुम्हारे लिए खीर बना देती हूं और वह एक कटोरा लेकर आई. तब गणेश जी ने कहा कि बुढ़िया कटोरा क्यों लाई है, इसके लिए कोई बड़ा बर्तन लाओ.
तब बुढ़िया बड़ा बर्तन लेकर आई और जैसे ही गणेश जी ने उस बर्तन में एक चम्मच दूध डाला, बर्तन दूध से भर गया. गणेश जी महाराज ने कहा कि मैं बाहर जाकर आता हूं, तुम तब तक खीर बना लो. कुछ देर बाद खीर बनकर तैयार हो गई.
खीर देखते ही बुढ़िया की बहू के मुंह में पानी आ गया. उसने खीर एक कटोरे में डाली और वह दरवाजे के पीछे बैठकर खीर खाने लगी. बहू से खीर की एक बूंद जमीन पर गिर गई।
जिससे भगवान गणेश जी ने स्वयं भोग ग्रहण कर लिया। थोड़ी देर बाद बुढ़िया गणेश जी को बुलाकर ले आई। गणेश जी ने कहा- बुढ़िया, मेरा भोग लग गया। बुढ़िया बोली लेकिन तुमने तो अभी तक खीर चखी भी नहीं है।
तब गणेश जी ने कहा कि जब तुम्हारी बहू ने दरवाजे के पीछे बैठकर खीर खाई तो अनजाने में ही सही, उसकी एक बूंद जमीन पर गिर गई और इसी कारण मेरा भोग लग गया।
बुढ़िया बोली- बेटा! अब मैं इस खीर का क्या करूं। गणेश जी ने कहा- खीर खुद भी खाओ और सबको बांटो। अगर फिर भी खीर बच जाए तो उसे थाली में डालकर ताक पर रख दो। शाम को गणेश महाराज आए और बुढ़िया से खीर मांगी।
बुढ़िया जैसे ही खीर लेने गई तो उस थाली में हीरे-मोती हो गए। हे गणेश जी महाराज, आपने जो धन-संपत्ति बुढ़िया को दी थी, वैसा ही सबको देना।
अहोई अष्टमी आरती | Ahoi ashtami aarti | अहोई माता की आरती
जय अहोई माता जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ।।
जय अहोई माता !
ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ।।
जय अहोई माता !
तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।
कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ।।
जय अहोई माता !
जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ।।
जय अहोई माता !
तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।
खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।।
जय अहोई माता !
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ।।
जय अहोई माता !
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ।।
जय अहोई माता !