हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani | harchat ki 6 kahaniya | हरछठ की 6 कहानियाँ

Published By: Bhakti Home
Published on: Sunday, Aug 25, 2024
Last Updated: Sunday, Aug 25, 2024
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Harchat ki kahani
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हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani:  हरछठ को हलछठ, ललही छठ या हलषष्ठी के नाम से भी जानते हैं । यहां हम हरछठ की 6 कहानियाँ (harchat ki 6 kahaniya) बताने जा रहे हैं। हरछठ की कहानी को हल छठ की कहानी, हलषष्ठी की कहानी के नाम से भी जानते हैं।

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हर छठ व्रत रखा जाता है. यह पर्व भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए हरछठ/ हल छठ/ हलषष्ठी /ललही छठ का व्रत रखती हैं। 

इस दिन संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखा जाता है. इस व्रत में महिलाएं पारंपरिक रूप से दीवार पर गाय के गोबर से छठ माता का चित्र बनाती हैं। इस दिन भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा की जाती है। 

मान्यता के अनुसार इस व्रत में दूध, घी, मेवा, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है. इस दिन गाय का दूध और दही नहीं खाना चाहिए। इस दिन दोपहर या शाम के समय हरछठ की कहानी (Harchat ki kahani) पढ़नी चाहिए। 

 

पहली कहानी - हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani | हल छठ की कहानी | हलषष्ठी की कहानी

 

मथुरा का राजा कंस जब अपनी बहन देवकी को विवाह के बाद विदा कराने जा रहा था तो उसे आकाशवाणी सुनाई दी कि देवकी का आठवां गर्भ उसकी मृत्यु का कारण बनेगा, 

उसने अपनी बहन और बहनोई को कारागार में डलवा दिया। कंस ने एक-एक करके वसुदेव और देवकी के छह पुत्रों को मार डाला। 

जब सातवें बच्चे के जन्म का समय निकट आया तो देवर्षि नारद जी वसुदेव और देवकी से मिलने गए और उनके दुख का कारण जानकर देवकी को हलषष्ठी देवी का व्रत रखने की सलाह दी। 

जब देवकी ने नारद जी से हलषष्ठी व्रत का माहात्म्य और कथा के बारे में पूछा तो नारद ने प्राचीन कथा सुनाना शुरू किया कि - 

चन्द्रव्रत नाम का एक राजा था, जिसका एक ही पुत्र था। राजा ने राहगीरों के लिए एक तालाब खुदवाया, लेकिन उसमें पानी नहीं था, वह सूख गया।

राहगीर उस रास्ते से गुजरते थे और सूखा तालाब देखकर राजा को बुरा-भला कहते थे। 

यह समाचार सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ कि उसने तालाब खुदवाया था, उसका धन और धर्म दोनों बर्बाद हो गए।

उसी रात वरुण देव राजा के स्वप्न में आए और कहा कि यदि तुम अपने पुत्र की बलि इस तालाब में दोगे तो यह जल से भर जाएगा।

प्रातःकाल राजा ने दरबार में स्वप्न में कही गई बात बताई और कहा कि यदि मेरा धन और धर्म बर्बाद हो जाए तो भी मैं अपने पुत्र की बलि नहीं दूंगा।

जब यह समाचार प्रजा के माध्यम से राजकुमार तक पहुंचा तो वह सोचने लगा कि यदि मेरे बलिदान से तालाब में पानी आ जाए तो प्रजा का कल्याण होगा।

यह सोचकर राजकुमार अपनी बलि देने के लिए तालाब में बैठ गया।

अब वह तालाब पानी से लबालब भर गया था, तालाब जलीय जंतुओं से भरा हुआ था। राजा अपने इकलौते पुत्र की बलि से दुखी होकर वन में चले गए।

वहां पांच स्त्रियां व्रत कर रही थीं। उन्हें देखकर राजा ने उनसे पूछा कि वे कौन सा व्रत कर रही हैं और क्यों कर रही हैं। यह पूछने पर स्त्रियों ने हलषष्ठी व्रत की पूरी विधि बताई।

यह सुनकर राजा वापस नगर में गए और अपनी रानी के साथ उस व्रत का पालन किया। 

व्रत के प्रभाव से राजकुमार जीवित तालाब से बाहर आ गया। राजा अपने परिवार सहित हलषष्ठी माता का गुणगान करते हुए सुखपूर्वक रहने लगे।

 

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दूसरी कहानी  - हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani 

 

अब नारदजी ने देवकी को हलषष्ठी व्रत की दूसरी कथा सुनानी शुरू की कि उज्जैन नगर में दो सहेलियां रहती थीं। 

एक का नाम रेवती और दूसरी का मानवती था। रेवती के कोई संतान नहीं थी, जबकि मानवती के दो पुत्र थे। 

रेवती अपनी सहेलियों के बच्चों से हमेशा ईर्ष्या करती थी और अपने पुत्रों को मारने के उपाय खोजती रहती थी।

एक दिन उसने मानवती को बुलाकर कहा कि बहन, आज तुम्हारे मायके से कुछ राहगीर मुझसे मिले। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारे पिता बहुत बीमार हैं और वे तुम्हें देखना चाहते हैं।

पिता की बीमारी के बारे में सुनकर मानवती दुखी हो गई। रेवती ने कहा कि बहन, तुम शीघ्र ही अपने पिता से जाकर मिलो, मैं तुम्हारे वापस आने तक बच्चों की देखभाल करूंगी। 

सहेलियों की बात को सच मानकर और अपने पुत्रों को रेवती के हाथों में सुरक्षित छोड़कर मानवती अपने पिता से मिलने मायके चली गई। 

अब रेवती ने बच्चों को मारने का अच्छा अवसर जानकर दोनों बच्चों को मारकर जंगल में फेंक दिया।

जब मानवती अपने मायके पहुंची तो अपने पिता को स्वस्थ देखकर उसने अपनी सहधर्मिणी द्वारा कही गई बातें उन्हें बताई और उनका कुशलक्षेम पूछा। 

अब मानवती के पिता ने किसी अनहोनी की आशंका से अपनी पुत्री को जाने को कहा, परंतु मानवती की मां ने कहा कि पुत्री आज हलषष्ठी माता के व्रत का दिन है, अतः तुम भी अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए यह व्रत करो और आज के स्थान पर कल जाओ। 

मां की बात मानकर मानवती ने अपने पुत्रों के स्वास्थ्य के लिए हलषष्ठी माता का व्रत रखा और अगले दिन अपने घर के लिए चल पड़ी।

रास्ते में वह उसी जंगल में आई और अपने बच्चों को वहां खेलते देखकर उसने उनसे पूछा कि वे यहां कैसे पहुंचे। 

तब पुत्रों ने उसे बताया कि तुम्हारे जाने के बाद हमारी दूसरी माता रेवती ने उन्हें मारकर यहां फेंक दिया था, फिर एक अन्य महिला ने उन्हें जीवित कर दिया था। 

अब मानवती को यह समझते देर नहीं लगी कि यह सब माता हलषष्ठी की कृपा से ही संभव हुआ है और वह माता की स्तुति करती हुई घर चली गई। 

नगर में मानवती के पुत्रों को पुनः जीवित देखकर और हलषष्ठी माता की महिमा जानकर सभी स्त्रियों ने हलषष्ठी व्रत करना शुरू कर दिया।
 

तीसरी कहानी -  हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani 

 

नारदजी ने देवकी को हलषष्ठी व्रत का अनुष्ठान कराया और कथा सुनाने लगे कि दक्षिण दिशा में एक सुन्दर नगर है, जहां एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ रहता था। 

पति-पत्नी दोनों ही स्वभाव से बहुत अच्छे और सुसंस्कृत थे। व्यापारी की पत्नी गर्भवती होकर बच्चों को जन्म देती, लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद उनके बच्चे मर जाते। 

इस तरह एक-एक करके व्यापारी की पत्नी के छह बच्चे मर गए। 

इससे पति-पत्नी दोनों बहुत दुखी हुए और मरने की नीयत से घर से जंगल की ओर चल दिए। 

वहां जंगल में उनकी मुलाकात एक संत से हुई, तब उन्होंने संत को अपना दुख बताया। संत ने ध्यान लगाकर देखा कि व्यापारी के बच्चे कहां हैं। 

संत ने ध्यान लगाकर यम, कुबेर, वरुण, इंद्र आदि लोकों में खोजा, लेकिन जब व्यापारी के बच्चे वहां नहीं दिखे, तो संत ब्रह्म लोक गए। 

वहां संत ने व्यापारी के सभी बच्चों को देखा और उनसे अपने माता-पिता के पास लौट जाने का आग्रह किया। 

बच्चों ने लौटने से मना कर दिया और कहा कि मुनिवर, हम इससे पहले भी कई बार जन्म ले चुके हैं। हम किस माता-पिता को याद करके उनके पास जाएं। 

हम अब जन्म-मृत्यु और गर्भाधान के चक्र से मुक्त हो चुके हैं, इसलिए अब हम जाना नहीं चाहते। 

तब संत ने व्यापारी से दीर्घायु संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। उन आत्माओं ने कहा कि यदि व्यापारी और उसकी पत्नी माता हलषष्ठी का व्रत रखें, पूजा करें, कथा सुनें और व्रत के बाद पानी में भिगोया हुआ कपड़ा (पोथा) अपने बेटे पर डालें, तो उनका बच्चा दीर्घायु होगा।

उन आत्माओं की बात सुनकर संत ध्यानपूर्वक वापस आए और व्यापारी को हलषष्ठी व्रत, कथा, नियम आदि के बारे में बताया। 

संत से यह अनुष्ठान सुनकर पति-पत्नी दोनों घर चले गए। कुछ समय बाद जब हलषष्ठी व्रत का दिन आया, तो उन्होंने व्रत रखा और संतान प्राप्ति का वरदान मांगा। 

माता हलषष्ठी की कृपा से अब व्यापारी की पत्नी गर्भवती हो गई और उसने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया।

अगले व्रत पर, संत के बताए अनुसार, उन्होंने अपने बेटे को पोता दिया। माता की कृपा से अब उनका बच्चा दीर्घायु हो गया। बनिये का परिवार खुशी से रहने लगा।

 

चौथी कहानी -  हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani 

 

एक बार राजा युधिष्ठिर ने अत्यंत दुःखी होकर भगवान श्री कृष्ण से कहा- "हे देवकी नंदन। सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु से दुःखी है तथा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा बालक भी ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से जल रहा है, क्योंकि दुष्ट अश्वत्थामा ने गर्भ को निर्जीव कर दिया है। 

द्रौपदी भी अपने पांच पुत्रों की मृत्यु से अत्यंत दुःखी है। अतः मुझे इस महान दुःख से उठने का कोई उपाय बताइए।" 

तब श्री कृष्ण जी ने कहा- राजन। यदि उत्तरा मेरे द्वारा बताए गए इस अद्वितीय व्रत को करेगी तो गर्भ में पल रहा शिशु पुनर्जीवित हो जाएगा। 

भाद्रपद की कृष्ण पक्ष षष्ठी को होने वाला यह व्रत, भगवान शिव-पार्वती, गणेश तथा स्वामी कार्तिकेय का विधिपूर्वक पूजन करके करने से अल्पायु तथा पुत्र-पौत्र के शोक के महान दुःख से मुक्ति दिलाने वाला है। 

इस व्रत के प्रसंग में श्री कृष्ण राजा युधिष्ठिर को कथा सुनाते हैं कि - पूर्वकाल में सुभद्रा नाम के एक राजा थे, जिनकी रानी का नाम सुवर्णा था। राजा-रानी के एक पुत्र था जिसका नाम हस्ती था। 

एक बार राजकुमार हस्ती अपनी धाय के साथ गंगा स्नान करने गए। 

बाल स्वभाव के कारण हस्ती जल में खेलने लगे। तभी एक मगरमच्छ ने उन्हें जल के अंदर खींच लिया। धाय ने इसकी सूचना रानी सुवर्णा को दी। 

इस पर रानी ने क्रोध में धाय के पुत्र को धधकती आग में फेंक दिया। 

धाय अपने पुत्र के शोक से व्याकुल होकर एक निर्जन वन में चली गई और वन में एक निर्जन मंदिर के पास रहने लगी। 

वह वन में सूखी घास, अनाज, महुआ आदि जो कुछ भी मिल जाता उसे खाकर अपना दिन व्यतीत करती और मंदिर में विराजमान शिव-पार्वती, गणेशजी की पूजा करती। 

इसी बीच नगर में एक अद्भुत घटना घटी कि धाय का पुत्र भट्टी से जीवित बाहर आ गया और खेलने लगा। 

जब यह समाचार पूरे नगर में फैल गया और राजा-रानी तक पहुंचा तो उन्होंने पुरोहितों से इस घटना के बारे में पूछा, 

तभी सौभाग्य से वहां दुर्वासा ऋषि आ पहुंचे। राजा-रानी ने ऋषि की पूजा की और धाय के पुत्र के जीवित हो जाने का कारण पूछा।

तब दुर्वासाजी ने कहा कि राजन, आपके भय से धाय ने वन में एकांत में व्रत रखा था, यह सब उसी व्रत का प्रभाव है। 

अब राजा-रानी सभी नगरवासियों के साथ दुर्वासाजी के नेतृत्व में उस वन में धाय के पास गए और उस व्रत के विषय में अधिक जानकारी मांगी।

 तब धाय ने बताया कि राजन, मैं अपने पुत्र के वियोग से दुखी होकर यहां व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती, गणेशजी और स्वामी कार्तिकेय की पूजा करने लगी और सूखी घास, अनाज, महुआ आदि खाकर रहने लगी। 

फिर रात्रि में मुझे स्वप्न में शिव परिवार के दर्शन हुए और आशीर्वाद मिला कि आपका पुत्र जीवित हो जाएगा। अब रानी ने व्रत की विधि पूछी तो दुर्वासाजी ने हलषष्ठी व्रत की पूरी विधि बताई। 

हलषष्ठी व्रत का महत्व जानकर राजा-रानी ने इसका पालन किया।

व्रत के प्रभाव से राजकुमार हस्ति ग्रह के चंगुल से छूट गया और खेलता हुआ नगर में आ गया। 

राजा-रानी पुत्र को पाकर प्रसन्न हुए और धाय भी अपने पुत्र के साथ सुखपूर्वक रहने लगी। 

वही बालक हस्ति आगे चलकर बहुत प्रसिद्ध हुआ और उसी के नाम पर हस्तिनापुर बसाया। 

इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को हलषष्ठी व्रत के महत्व का ज्ञान दिया और कहा कि पहले नारद जी से हलषष्ठी व्रत कथा सुनो, मेरी माता देवकी ने सबसे पहले इस व्रत को किया था जिससे उनकी होने वाली संतान की रक्षा हुई। 

अब भगवान श्री कृष्ण की बात सुनो और युधिष्ठिर ने उत्तरा से यह व्रत करवाया।

व्रत के प्रभाव से अश्वत्थामा द्वारा नष्ट किया गया उत्तरा का गर्भ पुनः जीवित हो गया और प्रसव के बाद एक बालक का जन्म हुआ, जो आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

पांचवी कहानी -  हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani 

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसकी प्रसव तिथि बहुत निकट थी। एक ओर उसे प्रसव की चिंता थी तो दूसरी ओर उसका मन गाय का रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। 

उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गाय का रस वहीं पड़ा रह जाएगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के बर्तन सिर पर रखे और उन्हें बेचने चल दी, लेकिन कुछ दूर जाने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा होने लगी। 

वह एक झरबेरी के पेड़ की ओट में चली गई और वहीं एक बच्चे को जन्म दिया। 

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हलषष्ठी थी। 

उसने गाय और भैंस के मिश्रित दूध को भैंस का दूध कहकर सीधे-सादे ग्रामीणों को बेच दिया। 

दूसरी ओर, जिस झरबेरी के पेड़ के नीचे वह बच्चे को छोड़कर गई थी, उसके पास ही एक किसान खेत जोत रहा था। 

अचानक उसके बैल उत्तेजित हो गए और हल का फाल उसके शरीर में घुसने से बच्चा मर गया। 

किसान को इस घटना से बहुत दुःख हुआ, फिर भी उसने साहस और धैर्य से काम लिया। 

उसने बच्चे के फटे पेट को झरबेरी के कांटों से सिल दिया और उसे वहीं छोड़ दिया। कुछ देर बाद दूध बेचने वाली ग्वालिन वहाँ पहुँची। 

बच्चे की हालत देखकर उसे समझते देर न लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। 

वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गाँव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता, तो मेरे बच्चे की यह हालत न होती। 

इसलिए मुझे लौटकर गाँव वालों को सब कुछ बताकर प्रायश्चित करना चाहिए। 

ऐसा निश्चय करके वह उस गाँव में पहुँची, जहाँ उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली जाकर अपने कुकर्म और उसके फलस्वरूप मिली सजा का वर्णन करती रही।

तब स्त्रियों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए और उस पर दया करके उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। 

जब वह अनेक स्त्रियों से आशीर्वाद लेकर पुनः झरबेरी के पेड़ के नीचे पहुँची, तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि उसका पुत्र वहाँ जीवित पड़ा था। 

तब उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना ब्राह्मण की हत्या के समान समझा और फिर कभी झूठ न बोलने की कसम खा ली।

 

छठी कहानी -  हरछठ की कहानी | Harchat ki kahani 

एक समय की बात है कांशीपुरी में एक देवरानी और जेठानी रहती थी। देवरानी का नाम तारा था और जेठानी का नाम विद्यावती था। 

अपने नाम के अनुसार तारा उग्र स्वभाव की थी और विद्यावती बहुत दयालु थी।  

एक दिन दोनों ने खीर बनाकर उसे ठंडा होने के लिए आंगन में रख दिया और अंदर बैठकर बातें करने लगीं। तभी दो कुत्तों ने खीर देख ली और उसे खाने लगे। 

अब आवाज सुनकर दोनों बाहर आईं और देखा कि कुत्ते उनकी खीर खा रहे हैं। 

विद्यावती ने फिर अपनी खीर का बचा हुआ हिस्सा कुत्ते के सामने डाल दिया और तारा ने दूसरे कुत्ते को एक कमरे में बंद करके पीटना शुरू कर दिया। 

किसी तरह वह कुत्ता अपनी जान बचाकर बाहर भागा। अगले दिन दोनों कुत्ते एक जगह मिलते हैं और एक-दूसरे का हालचाल पूछते हैं। 

इस पर विद्यावती की खीर खाने वाला कुत्ता कहता है कि वह महिला बहुत दयालु थी, उसने बची हुई खीर मुझे भी खाने को दी। 

भगवान करे कि जब मेरा दोबारा जन्म हो तो मैं उसी का बच्चा बनूं और उसकी अच्छे से सेवा करूं। अब दूसरा कुत्ता कहता है कि मुझे भी उस स्त्री का बच्चा बनना चाहिए ताकि मैं उससे बदला ले सकूं। 

उस दिन हलषष्ठी व्रत था। तारा की पिटाई से वह कुत्ता बेदम होकर मर गया।

अगले हलषष्ठी व्रत के दिन तारा ने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के बाद अगले हलषष्ठी व्रत के दिन वह बच्चा मर गया।

इसी तरह तारा ने एक-एक करके पांच पुत्रों को जन्म दिया। उसका पुत्र एक वर्ष के बाद हलषष्ठी व्रत के दिन ही मर जाता था।

जिससे तारा दुखी हो गई और हलषष्ठी माता की प्रार्थना करने लगी।  उसी रात तारा को सपने में वही कुत्ता दिखाई दिया जो उसकी पिटाई से मर गया था। 

कुत्ते ने सपने में तारा से कहा कि मैं तुमसे बदला लेने के लिए तुम्हारा पुत्र बनकर आ रहा हूं और मरने के बाद फिर आऊंगा।

जब तारा ने अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगी तो उस कुत्ते ने कहा कि तुम्हें हलषष्ठी व्रत करना चाहिए ताकि तुम्हें दीर्घायु पुत्र की प्राप्ति हो। 

स्वप्न में बताई गई विधि के अनुसार तारा ने अगली बार हलषष्ठी व्रत किया और माता से आशीर्वाद मांगा। 

हलषष्ठी माता की कृपा से तारा ने एक दीर्घायु बालक को जन्म दिया और सुखपूर्वक रहने लगी। इधर विद्यावती ने भी हलषष्ठी व्रत किया और माता की कृपा से एक सुन्दर और गुणवान पुत्र को जन्म दिया और सुखपूर्वक रहने लगी।

 

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