
ललही छठ पूजा विधि (Lalahi chhath puja vidhi) ललही छठ या हल छठ या हर छठ में करते हैं। श्री कृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पहले ललही छठ या हल छठ का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं।
ज्यादातर यह व्रत पुत्रवती महिलाएं ही रखती हैं। सनातन धर्म में इस व्रत को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है।
इतना ही नहीं इस व्रत को करने से धन और समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। हर छठ व्रत निराहार रहकर किया जाता है। इसे बलराम छठ भी कहते हैं। यहां जानें ललही छठ की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।
ललही छठ पूजा सामग्री
- भैंस का दूध, घी, दही और गोबर
- महुआ फल, फूल और पत्ते
- ज्वार के बीज, ऐपण
- छोटे मिट्टी के कुल्हड़ / प्याले
- लाल चंदन
- मिट्टी का दीपक
- सात प्रकार के अनाज (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का और मूंग)
- धान का लाजा, हल्दी, नए कपड़े,
- जनेऊ और कुश
- देवली छेवली
- तालाब में उगाए गए चावल
- भुने हुए चने, घी में भुना हुआ महुआ
ललही छठ पूजा विधि - ललही छठ व्रत विधि - Lalahi chhath puja vidhi Step by Step
- ललही छठ के दिन सुबह जल्दी उठकर महुआ के दातुन से दांत साफ करने चाहिए।
- इसके बाद स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- इस दिन घर की दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाएं।
- इसके साथ ही हल, सप्त ऋषि, पशु और किसान का चित्र भी बनाएं।
- इसके बाद घर में बनाए गए ऐपण से सभी की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
- इसके बाद साफ चौकी पर कपड़ा बिछाकर उस पर कलश स्थापित किया जाता है।
- फिर भगवान गणेश और माता पार्वती की प्रतिमा को चौकी पर रखकर उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है
- इसके बाद मिट्टी के कुल्हड़ में ज्वार और महुआ भरा जाता है।
- फिर एक बर्तन में देवली छेवली रखी जाती है।
- इसके बाद हल छठ माता की पूजा की जाती है।
- फिर कुल्हड़ और बर्तन की पूजा की जाती है।
- इसके बाद भगवान को सात प्रकार के अनाज (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का और मूंग) का भोग लगाया जाता है।
- इसके बाद भुने हुए चने का भोग लगाया जाता है।
- इसके साथ ही भगवान को हल्दी से रंगे आभूषण और वस्त्र भी अर्पित किए जाते हैं।
- इसके बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन-पूजा की जाती है।
- अंत में हरछठ की कथा पढ़ी जाती है और फिर छठ माता की आरती की जाती है।
- इसके बाद व्रती महिलाएं पूजा स्थल पर बैठकर महुआ के पत्तों पर महुआ फल और भैंस के दूध से बनी दही खाती हैं।
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ललही छठ महत्व - Lalahi chhath significance
ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के जन्म से दो दिन पहले उनके बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था।
इसीलिए हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रंधन छठ मनाया जाता है।
इस पावन पर्व को हलष्ठी, चंदन छठ, तिनछी, तिन्नी छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, ललही छठ, कमर छठ या खमर छठ आदि नामों से भी जाना जाता है।