
नवरात्रि हवन विधि मंत्र | Navratri havan vidhi and mantra in hindi - नवरात्रि हवन देवी दुर्गा की आराधना का एक पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो नवरात्रि के दिनों में किया जाता है। हवन से घर-परिवार में शुद्धि, शांति और समृद्धि आती है। इस हवन के माध्यम से अग्नि देवता के माध्यम से देवी दुर्गा को आहुतियाँ अर्पित की जाती हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। नवरात्रि हवन में मंत्रों द्वारा देवी का आह्वान किया जाता है और भक्तजन अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक हवन विधि का पालन करते हैं।
नवरात्रि हवन विधि मंत्र | Navratri havan vidhi and mantra in hindi
नवरात्रि हवन एक पवित्र अनुष्ठान है, जो माँ दुर्गा की पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें अग्नि देवता को आहुतियाँ दी जाती हैं और देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है। हवन के दौरान किए जाने वाले मंत्र और सही विधि नीचे दिए गए हैं।
1. हवन सामग्री (Havan Samagri)
- आम की लकड़ी (समिधा)
- घी
- हवन कुंड
- चावल (अक्षत)
- कुमकुम, रोली, हल्दी
- गुड़, तिल, जौ
- हवन समिधा (सूखी लकड़ी के टुकड़े)
- कपूर
- लौंग, इलायची
- पान के पत्ते, सुपारी
- जल पात्र
- फूल, बेल पत्र
- दूर्वा
- पंचमेवा (काजू, बादाम, अखरोट, मुनक्का, छुआरा)
2. हवन प्रारंभ की विधि (Havan Prarambh Vidhi):
- एक स्वच्छ स्थान पर हवन कुंड रखें।
- हवन कुंड के चारों ओर पवित्रीकरण के लिए जल छिड़कें।
- हवन कुंड में गोबर और मिट्टी का प्रयोग कर एक आधार बनाएं।
- उसमें आम की लकड़ी (समिधा) रखें।
- लकड़ियों पर थोड़ी मात्रा में कपूर रखें और उसे प्रज्वलित करें।
- अब जल पात्र को पास में रखें और हवन में आहुति देने के लिए घी और सामग्री तैयार रखें।
3. कलश स्थापना (Kalash Sthapana):
- एक कलश में जल, सुपारी, सिक्का और पंचामृत भरकर उसके ऊपर आम के पत्ते और नारियल रखें।
- कलश की पूजा करें और उसमें माँ दुर्गा का आवाहन करें।
मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः।
4. हवन प्रारंभ (Havan Prarambh)
सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें और हवन में सिद्धि और विघ्नों के नाश के लिए आह्वान करें।
गणपति आवाहन मंत्र:
ॐ गं गणपतये नमः।
फिर माँ दुर्गा का ध्यान करें और हवन की शुरुआत करें।
दुर्गा आवाहन मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा।
5. हवन की आहुतियाँ (Havan Ahutiyan):
हवन के दौरान नीचे दिए गए मंत्रों के साथ आहुतियाँ दी जाती हैं। प्रत्येक मंत्र के बाद “स्वाहा” बोलकर आहुति दें।
इन 5 मंत्रों के साथ 5 बार घी की आहुति दें।
- ॐ प्रजापतये स्वाहा।
- ॐ इन्द्राय स्वाहा।
- ॐ अग्नये स्वाहा।
- ॐ सोमाय स्वाहा।
- ॐ भूः स्वाहा।
दुर्गा आहुति मंत्र | Durga ahuti mantra
(आहुति दें और चावल, घी हवन कुंड में डालें।)
दुर्गा आहुति मंत्र - एक एक बार इस मंत्र से आहुति दें
- ॐ दुर्गा देवी नमः स्वाहा
- ॐ शैलपुत्री देवी नमः स्वाहा
- ॐ ब्रह्मचारिणी देवी नमः स्वाहा
- ॐ चंद्र घंटा देवी नमः स्वाहा
- ॐ कुष्मांडा देवी नमः स्वाहा
- ॐ स्कन्द देवी नमः स्वाहा
- ॐ कात्यायनी देवी नमः स्वाहा
- ॐ कालरात्रि देवी नमः स्वाहा
- ॐ महागौरी देवी नमः स्वाहा
- ॐ सिद्धिदात्री देवी नमः स्वाहा
नर्वाण बीज मंत्र - माता के नर्वाण बीज मंत्र से कम से कम 11 बार या 108 बार आहुतियां दें। मंत्र इस प्रकार है-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै। स्वाहा
अब नीचे दिए गए मंत्रों से हवन में आहुति दें
- ॐ गणेशाय नम: स्वाहा।
- ॐ गौरियाय नम: स्वाहा।
- ॐ हनुमते नम: स्वाहा।
- ॐ भैरवाय नम: स्वाहा।
- ॐ कुल देवताय नम: स्वाहा।
- ॐ स्थान देवताय नम: स्वाहा
- ॐ ब्रह्माय नम: स्वाहा।
- ॐ विष्णुवे नम: स्वाहा।
- ॐ शिवाय नम: स्वाहा।
गायत्री मंत्र - गायत्री मंत्र का 11 बार जाप करते हुए आहुति दें। गायत्री मंत्र इस प्रकार है
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। स्वाहा
एक एक बार इस मंत्र से आहुति दें
- ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते। स्वाहा।
- ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
6. दुर्गा सप्तशती के मंत्र (Durga Saptashati Mantras)
नवरात्रि के हवन में दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का विशेष महत्व है। आप इनमें से कोई भी मंत्र जप सकते हैं और आहुतियाँ दे सकते हैं।
1. या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
2. या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
3. या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
4. या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
5. या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
6. या देवी सर्वभूतेषु च्छायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
7. या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
8. या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
9. या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
10. या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
11. या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
12. या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
13. या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
14. या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
15. या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
16. या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
17. या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
18. या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
19. या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
20. या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
21. या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
22. इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भुतानाञ्चाखिलेषु या ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
23. चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत् ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्वाहा
24. स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रया । त्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी । शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।। स्वाहा
25. या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै । रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते ।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति नः । सर्वापदो भक्तिविनम्रमूर्तिभिः ।। स्वाहा
26. ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नमस्तुते ।। स्वाहा
7. महामृत्युञ्जय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra)
इस मंत्र से भी हवन किया जा सकता है। यह मंत्र विशेष रूप से रोग, भय और मृत्यु के संकट से मुक्ति दिलाने के लिए प्रभावी होता है:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात् स्वाहा॥
8. नवग्रह हवन मंत्र (Navgrah havan mantra)
नवग्रह हवन मंत्र - एक एक बार इस मंत्र से आहुति दें। ये नवग्रह हवन मंत्र (Navgrah havan mantra) हैं ।
- ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा
- ऊँ चंद्रयसे स्वाहा
- ऊं भौमाय नमः स्वाहा
- ऊँ बुधाय नमः स्वाहा
- ऊँ गुरवे नमः स्वाहा
- ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा
- ऊँ शनये नमः स्वाहा
- ऊँ राहवे नमः स्वाहा
- ऊँ केतवे नमः स्वाहा
- ॐ नवग्रहाय नम: स्वाहा।
- ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि: भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्रे शनि राहु केतो सर्वे ग्रहा शांति कर: भवंतु स्वाहा।
9. पूर्णाहुति (Purnahuti)
हवन के बाद एक नारियल के गोले में कलावा बांधें। उसके ऊपरी हिस्से को काटकर उसमें घी, पान, सुपारी, लौंग, जायफल और जो भी प्रसाद आपके पास हो उसे डाल दें और बची हुई हवन सामग्री भी उस नारियल में डाल दें। फिर पूरा आहुति मंत्र पढ़ते हुए इस गोले को हवन कुंड की अग्नि के बीच में रख दें।
पूर्णाहुति के समय पूरे परिवार के सदस्यों को मिलकर एक साथ आहुति देनी चाहिए। इस समय आप विशेष रूप से माँ दुर्गा से अपने परिवार की सुख-समृद्धि, आरोग्य और शांति की प्रार्थना करें।
पूर्णाहुति मंत्र:
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥
ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णादिमं उच्यते,
पुणस्य पूर्णम् उदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णभादाय पूर्णमेवावाशिष्यते।।
10. हवन समापन (Havan Samapan)
- हवन समाप्ति के बाद सभी देवी-देवताओं से क्षमा याचना करें कि यदि कोई त्रुटि हो गई हो, तो उसे क्षमा करें।
क्षमा याचना मंत्र:
कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा। बुद्ध्यात्मना वा प्रकृति स्वभावात्॥
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै। नारायणा येति समर्पयामि॥
11. आरती (Aarti) | जय अम्बे गौरी आरती | Jai Ambe Gauri aarti
हवन के बाद माँ दुर्गा की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
इस विधि से नवरात्रि हवन करने से देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है, परिवार में सुख-समृद्धि, आरोग्य और शांति का वास होता है।
|| जय अम्बे गौरी आरती ||
जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत,हरि ब्रह्मा शिवरी॥ जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत,टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना,चन्द्रवदन नीको॥ जय अम्बे गौरी
कनक समान कलेवर,रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला,कण्ठन पर साजै॥ जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत,खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत,तिनके दुखहारी॥ जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित,नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर,सम राजत ज्योति॥ जय अम्बे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे,महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,निशिदिन मदमाती॥ जय अम्बे गौरी
चण्ड-मुण्ड संहारे,शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे,सुर भयहीन करे॥ जय अम्बे गौरी
ब्रहमाणी रुद्राणीतुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी,तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे गौरी
चौंसठ योगिनी मंगल गावत,नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा,अरु बाजत डमरु॥ जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता,तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता,सुख सम्पत्ति करता॥ जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित,वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत,सेवत नर-नारी॥ जय अम्बे गौरी
कन्चन थाल विराजत,अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत,कोटि रतन ज्योति॥ जय अम्बे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती,जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी,सुख सम्पत्ति पावै॥ जय अम्बे गौरी