Shiv shakti stotram

Published By: Bhakti Home
Published on: Friday, Jul 26, 2024
Last Updated: Friday, Jul 26, 2024
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Shiv shakti stotram or Ardhanarishvara Stotra was composed by Sri Adi Shankaracharya. It portrays the concept that Creator and Creation are one, embodied in Ardhanarishvara, a composite form of Shiva and Shakti (Shiva Shakti) in one body. 

This form highlights that Shiva transcends gender, encompassing both masculine and feminine aspects. Shiva represents the unmanifested, while Shakti represents the manifested.

 

शिव शक्ति स्तोत्रम या अर्धनारीश्वर स्तोत्र की रचना श्री आदि शंकराचार्य ने की थी। यह इस अवधारणा को दर्शाता है कि सृष्टिकर्ता और सृष्टि एक हैं, जो अर्धनारीश्वर में सन्निहित हैं, जो एक शरीर में शिव और शक्ति का एक संयुक्त रूप है।

यह रूप इस बात पर प्रकाश डालता है कि शिव लिंग से परे हैं, जिसमें पुरुष और स्त्री दोनों पहलू शामिल हैं। शिव अव्यक्त का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि शक्ति व्यक्त का प्रतिनिधित्व करती है।

 

शिव शक्ति स्तोत्रम - Shiv shakti stotram

 

चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै , कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय , नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 1 ॥

Champeya Gaurardh Shareer Kaaye, Karpoor Shareer Kaaye.
Dhammilla Kaaye cha jataadharaay,  Namah shivaya ch Namah shivaya. (1)

अर्थ: आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं । भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

 

कस्तूरिकाकुङ्कुमचर्चितायै ,  चितारजःपुञ्ज विचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय,  नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 2 ॥

Kastoori kaa kunkuma charchitaayai Chita Rajah punj vicharchitaay.
krit smarayai Vikrat smarayai, Namah shivaya ch Namah shivaya. (2)

अर्थ: पार्वतीजी के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है । पार्वतीजी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं, ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै , पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।
हेमांगदायै भुजगांगदाय , नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 3 ॥

Chalat kvaant kanakan nupuraayai,  Padabja raajatphani nupuraay.
Hemaangadaayai Bhujangadaay,  Namah shivaya ch Namah shivaya. (3)

अर्थ: भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों और पैरों में सर्पों के फुफकार की ध्वनि हो रही है । पार्वतीजी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं और भगवान शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 4॥

Vishal Neelotpal Lochanayai, Vikasi Pankeru ha lochanaay.
Samekshanayai Vishme kshanay, Namah shivaya ch Namah shivaya.(4)

अर्थ: पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं । पार्वतीजी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 5॥

Mandara Mala Kalitaal kaayai,  Kapaal Malankit kandharaay.
Divyaambaraayai ch Digambaraay Namah shivaya ch Namah shivaya. (5)

अर्थ: पार्वतीजी के केशपाशों में मन्दार-पुष्पों की माला सुशोभित है और भगवान शंकर के गले में मुण्डों की माला सुशोभित हो रही है । पार्वतीजी के वस्त्र अति दिव्य हैं और भगवान शंकर दिगम्बर रूप में सुशोभित हो रहे हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

 

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै , तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय , नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 6॥

Ambhodar Shyamal kuntalayai, Tadita Prabhatamra Jatadharay.
Nireshvarayai Nikhileshvaray, Namah shivaya ch Namah shivaya. (6)

अर्थ: पार्वतीजी के केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा लिए हुए चमकती दीखती है । पार्वतीजी परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं है और भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

 

प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै , समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे , नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 7॥

Prapancha Srshtyun Mukhalasya kaayai,  Samasta Sanhark Tandvaay.
Jagajja Nanyai Jagade kapitre, Namh Shivaye ch Namh Shivaye. (7)

अर्थ: भगवती पार्वती लास्य नृत्य करती हैं और उससे जगत की रचना होती है और भगवान शंकर का नृत्य सृष्टिप्रपंच का संहारक है । पार्वतीजी संसार की माता और भगवान शंकर संसार के एकमात्र पिता हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै , स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय , नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 8॥

Pradeept Ratnojjvala kundalayai, Sphurna Mahaapannag Bhooshanaay.
Shivanvitai ch Shivanvitai, Namah shivaya ch Namah shivaya.(8)

अर्थ: पार्वतीजी प्रदीप्त रत्नों के उज्जवल कुण्डल धारण किए हुई हैं और भगवान शंकर फूत्कार करते हुए महान सर्पों का आभूषण धारण किए हैं । भगवती पार्वतीजी भगवान शंकर की और भगवान शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं । ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है ।।

एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या , स मान्यो भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं , भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि: ।।

Etat Pathedasht kamishtadam yo bhaktya,  Sa manyo Bhuvi Deerghajeevee.
Prapnoti Saubhaagyam anantakaalan,  Bhooyaat Sada tasya sarvasiddhi.

अर्थ: आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि करने वाला हैं । जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है, वह अनन्त काल के लिए सौभाग्य व समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है ।

 

।। इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।। 

 

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