Nag panchami vrat katha | नाग पंचमी व्रत कथा

Published By: Bhakti Home
Published on: Friday, Aug 9, 2024
Last Updated: Friday, Aug 9, 2024
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Nag panchami vrat katha
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नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से उत्तम लोक की प्राप्ति होती है और सर्पदंश का भय दूर होता है। नाग पंचमी का व्रत रखने वालों के लिए नाग पंचमी व्रत कथा का पाठ करना अनिवार्य है। नाग पंचमी व्रत कथा (Nag panchami vrat katha) विस्तार से देखें।

 

Nag panchami vrat katha | नाग पंचमी व्रत कथा

मान्यता है कि भविष्य पुराण में वर्णित इस कथा का नाग पंचमी के दिन पाठ करने से इस लोक में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और आपके परिवार में किसी की मृत्यु सर्पदंश से नहीं होती। कथा इस प्रकार है ।

 

सुमन्तु मुनि बोले- राजन्! अब मैं पंचमी कल्प का वर्णन करता हूं। पंचमी तिथि नागों को अत्यन्त प्रिय है और उन्हें आनन्द देने वाली है। इस दिन नागलोक में विशिष्ट उत्सव होता है। 

पंचमी तिथि को जो व्यक्ति नागों को दूध से स्‍नान कराता है, उसके कुल में वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक तथा धनंजय- ये सभी बड़े-बड़े नाग अभय दान देते हैं- उसके कुल में सर्प का भय नहीं रहता।

एक बार माता के शाप से नागलोग जलने लग गए थे। इसलिए उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए पंचमी को गाय के दूध से नागों को आज भी लोग स्‍नान कराते हैं। इससे सर्प-भय नहीं रहता।

 

राजा ने पूछा- महाराज!नागमाता ने नागों को क्‍यों शाप दिया था और फिर वे कैसे बच गये? इसका आप विस्तारपूर्वक वर्णन करें।

 

सुमन्तु मुनि ने कहा- एक बार राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। 

उस समय समुद्र से अतिशय श्वेत उच्चैःश्रवा नाम का एक अश्व निकला, उसे देखकर नागमाता कद्रू ने अपनी सौत विनता से कहा कि देखो, यह अश्व श्वेतवर्ण का है, परंतु इसके बाल काले दीख पड़ते हैं। 

तब विनता ने कहा न तो यह अश्‍व न तो श्‍वेत है, न काला और न लाल। यह सुनकर कद्रू ने कहा- मेरे साथ शर्त करो कि यदि में इस अश्व के बालों को कृष्ण वर्ण का दिखा दूं तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊंगी। 

विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली। दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थान को चली गईं। 

कद्रू ने अपने पुत्र नार्गों को बुलाकर सब वृत्तान्त उन्हें सुना दिया और कहा कि 'पुत्रो। 

तुम अश्व के बाल के समान सूक्ष्म होकर उसके शरीर में लिपट जाओ, जिससे यह कृष्ण वर्ण का दिखाई देने लगे। ताकि में अपनी सौत विनता को जीतकर उसको अपनी दासी बना सकूं।

 

माता के इस वचन को सुनकर नागों ने कहा कि कहा 'मां! यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। छल से जीतना बहुत बड़ा अधर्म है।' 

पुत्रों का यह बचन सुनकर कद्रू ने कहा- तुम लोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिये मैं तुम्हें शाप देती हूं कि पांडवों के वंश में उत्‍पन्‍न राजा जनमेजय जब सर्प-सत्र करेंगे, तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्रि में जल जाओगे। 

इतना कहकर कद्रू चुप हो गई। नागगण माता का शाप सुनकर बहुत घबराए और वासुकि को साथमें लेकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे तथा ब्रह्माजी को अपना सारा वृत्तान्त सुनाया। 

इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि वासुके। चिन्ता मत करो। मेरी बात सुनो, यायावर वंश में बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारु नाम वाली बहन का विवाह कर देना और वह जो भी कहे उसका वचन स्‍वीकार करना। 

उसे आस्तीक नामका विख्यात पुत्र उत्पन्न होगा, वह जनमेजय के सर्पयज्ञ को रोकेगा और तुमलोगों को रक्षा करेगा। ब्रह्माजीके इस वचन को सुनकर नागराज वासुकि आदि अतिशय प्रसन्‍न हो, उन्हें प्रणाम कर अपने लोक में आ गए।

 

सुमन्तु मुनि ने इस कथा को सुनाकर कहा- राजन् ! यह यज्ञ तुम्हारे पिता राजा जनमेजय ने किया था।

यही बात श्रीकृष्णभगवान भी युधिष्ठिर से कही थी कि 'राजन् ! आज से सौ वर्ष के बाद सर्पयज्ञ होगा, जिसमें बड़े-बड़े विषधर और दुष्ट नाग नष्ट हो जाएंगे। 

करोड़ों नाग जब अग्रि में दग्ध होने लगेंगे, तव आस्तीक नामक ब्राह्मण सर्पयज्ञ रोककर नागों की रक्षा करेगा। 

ब्रह्माजी ने पंचमी के दिन वर दिया था और आस्तीक मुनि ने पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी, अतः पंचमी तिथि नागों को बहुत प्रिय है।

पंचमी के दिन नागों की पूजाकर यह प्रार्थना करनी चाहिये कि जो नाग पृथ्वी में, आकाश में, स्वर्ग में, सूर्य की किरणों में, सरोवरों में, वापी, कूप, तालाब आदि में रहते हैं, वे सब हमपर प्रसन्‍न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं।

 

सर्वे नागाः प्रीयन्तो मे ये केचित् पृथिवीतले ।।

ये च हेलिमरीविस्था येऽन्तरे दिखि संस्थिताः ।

ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः ।

ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः ॥

इस प्रकार नागों को विसर्जित कर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये और स्वयं अपने कुटुम्बियों के साथ भोजन करना चाहिए। 

प्रथम मीठा भोजन करना चाहिये, अनन्तर अपनी अभिरुचि के अनुसार भोजन करें।

इस प्रकार नियमानुसार जो पंचमी को नागों का पूजन करता है, यह श्रेष्ठ विमान में बैठकर नागलोक को जाता है और बाद में द्वापरयुग में बहुत पराक्रमी, रोगरहित तथा प्रतापी राजा होता है। इसलिये घी, खीर तथा गुग्गुल से इन नागों की पूजा करनी चाहिए।

 

राजा ने पूछा- महाराज! क्रुद्ध सर्प के काटने से मरने वाला व्‍यक्ति किस गति को प्राप्त होता है और जिसके माता-पिता, भाई, पुत्र आदि सर्प के काटने से मरे हों, उनके उद्धार के लिए कौन सा व्रत, दान अथवा उपवास करना चाहिए। यह आप बताएं।

 

सुमन्तु मुनि ने कहा- राजन् ! सर्प के काटने से जो मरता है, वह अधोगति को प्राप्त होता है तथा निर्विष सर्प होता है और जिसके माता-पिता आदि सर्प के काटने से मरते हैं, 

वह उनकी सदृति के लिए भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उपवास कर नागों की पूजा करे। यह तिथि महापुण्या कही गयी है। 

इस प्रकार बारह महीने तक चतुर्थी तिथि के दिन एक बार भोजन करना चाहिये और पंचमी को व्रत कर नागों की पूजा करनी चाहिए। 

पृथ्वी पर नागों का चित्र अंकित कर अथवा सोना, काष्ठ या मिट्टी का नाग बनाकर पंचमी के दिन करवीर, कमल, चमेली आदि पुष्प, गन्ध, धूप और विविध नैवेद्यों से उनकी पूजा कर घी, खीर और लड्डू उत्तम पांच ब्राह्मणों को खिलाएं। 

अनन्त, वासुकि, शंख, पद्म, कंबल कर्कोटक आदि 12 नागों की क्रमश: पूजा करें।

इस प्रकार पूरे वर्ष व्रत और पूजन करके व्रत की पारणा करनी चाहिए। कई ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। एक विद्वान ब्राह्मण को सोने का नाग बनाकर उसे दान करना चाहिए। 

यह उद्यापन की विधि है। हे राजन! आपके पिता जनमेजय ने भी अपने पिता परीक्षित के उद्धार के लिए यह व्रत किया था और सोने का एक बड़ा नाग तथा कई गायें ब्राह्मणों को दान की थीं। 

ऐसा करने से वे पितृ ऋण से मुक्त हो गए थे और परीक्षित ने भी उत्तम लोक को प्राप्त किया था। आप भी इसी प्रकार सोने का नाग बनाकर उसकी पूजा करके उसे ब्राह्मण को दान करें, इससे आप भी पितृ ऋण से मुक्त हो जाएंगे। 

राजन, जो कोई भी इस नागपंचमी व्रत को करेगा, उसे सांप के डसने पर भी शुभलोक की प्राप्ति होगी और जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेगा, उसके कुल में कभी भी सांप का भय नहीं होगा। इस पंचमी व्रत के करने से उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।

 

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