Shani pradosh vrat katha - शनि प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ने वाली प्रदोष (त्रयोदशी) तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और शनिदेव की पूजा की जाती है। पढ़िए शनि प्रदोष से जुड़ी पौराणिक कथा:-
Shani pradosh vrat katha | शनि प्रदोष व्रत कथा
इसकी कथा के अनुसार प्राचीन काल में नगर में एक सेठ रहता था। व्यापारी के घर में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं, लेकिन संतान न होने के कारण सेठजी और उसकी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे। बहुत सोच-विचार के बाद सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और स्वयं अपनी पत्नी के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ा।
अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले जो ध्यान में लीन थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ा जाए। सेठ और उसकी पत्नी साधु के पास बैठ गए। जब साधु ने आंखें खोलीं तो उन्हें पता चला कि सेठ और उसकी पत्नी बहुत देर से उनके आशीर्वाद की प्रतीक्षा कर रहे थे।
साधु ने सेठ और उसकी पत्नी से कहा कि मैं तुम्हारा दुख जानता हूं। तुम्हें शनि प्रदोष व्रत करना चाहिए, इससे तुम्हें संतान सुख की प्राप्ति होगी। साधु ने सेठ और सेठानी को प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और भगवान शंकर से निम्न प्रार्थना भी कही।
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ सुर नमस्कार।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत सुधि नमस्कार।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश प्रभु नमस्कार।
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।
दोनों ने साधु से आशीर्वाद लिया और तीर्थ यात्रा के लिए चल पड़े। तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद व्यापारी और उसकी पत्नी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया, जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और उनका जीवन खुशियों से भर गया।