
Krishna Janmashtami wishes in sanskrit (कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ संस्कृत में)
Krishna Janmashtami wishes in sanskrit
1 - अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ 1 ॥
आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी ऑंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है और आपकी चाल मधुर है। हे मधुरता के स्वामी, श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है।
Your lips are sweet, your face is sweet, your eyes are sweet, your smile is sweet, your heart is sweet and your gait is sweet. O Lord of sweetness, Sri Krishna! Everything about you is sweet.
2 - कृष्णात् परं किमपि तत्त्वमहं न जाने।
कृष्णात् परं किमपि तत्त्वमहं न जाने।
मैं भगवान कृष्ण के अलावा किसी अन्य तत्व को नहीं जानता।
I do not know any element other than Lord Krishna.
3 - भगवान् कृष्णः भवन्तं
भगवान् कृष्णः भवन्तं भवतः कुटुम्बं च प्रीणातु।
कृष्णजन्माष्टम्याः अवसरे भवतः कुटुम्बस्य च कृते अहम् आनन्दं सौहार्दं समृद्धिं च कान्क्ष्ये।
भगवान कृष्ण आप और आपके परिवार पर अपनी कृपा बरसाएँ। मैं कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर आपके और आपके परिवार के लिए सुख, सद्भाव और समृद्धि की कामना करता हूँ।
May Lord Krishna shower his blessings on you and your family. I wish you and your family happiness, harmony and prosperity on Krishna Janmashtami.
4 - कर्षति आकर्षति इति कृष्णः।
कर्षति आकर्षति इति कृष्णः।
जो खींचते हैं, आकर्षित करते हैं, वे श्री कृष्ण हैं।
The one who pulls, attracts, is Shri Krishna.
5 - भजे व्रजैक मण्डनम्
भजे व्रजैक मण्डनम्, समस्त पाप खण्डनम्,
स्वभक्त चित्त रञ्जनम्, सदैव नन्द नन्दनम्,
सुपिन्छ गुच्छ मस्तकम्, सुनाद वेणु हस्तकम्,
अनङ्ग रङ्ग सागरम्, नमामि कृष्ण नागरम् ॥
मैं उनकी पूजा करता हूँ जो व्रजभूमि के आभूषण हैं, जो समस्त पापों का नाश करने वाले हैं,
जो अपने भक्तों के मन को प्रसन्न करते हैं और जो नन्द के पुत्र हैं।
उन ज्ञानेश्वर भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार है, जिनका मस्तक मोरपंखों से सुशोभित है,
जिनके हाथ में मधुर ध्वनि वाली बांसुरी है और जो प्रेम के सागर का संगीत हैं।
I worship Him who is the ornament of Vrajbhumi, who destroys all sins, who pleases the minds of His devotees, and who is the son of Nanda. Salutations to that Jnaneshwar Lord Shri Krishna, whose head is adorned with peacock feathers, who has a sweet-sounding flute in His hand, and who is the music of the ocean of love.
6 - दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम्।
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम्।
नंदकुमार को प्रतिदिन नये-नये रूप में मेरा प्रणाम।
My salutations to Nandkumar in newer ways every day.
7 - ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः
ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः।
अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वेकारणकारणम् ॥
भगवान कृष्ण परम पुरुष हैं जो सत्य और आनंद के अवतार हैं। उनका कोई आरंभ नहीं है क्योंकि वे ही सब कुछ का आरंभ हैं। भगवान गोविंद सभी कारणों के कारण हैं।
Lord Krishna is the Supreme Being who is the embodiment of truth and bliss. He has no beginning because He is the beginning of everything. Lord Govinda is the cause of all causes.
8 - वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूर मर्दनम्
वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ 1 ॥
वसुदेव के पुत्र, देवकी माता को परमानंद देनेवाले, कंस एवं चाणूर का मर्दन करनेवाले और संपूर्ण जगत के गुरु,भगवान श्रीकृष्ण को मेरा नमन है।
I bow to Lord Krishna, the son of Vasudeva, the one who gave bliss to mother Devaki, the one who killed Kansa and Chanur, and the Guru of the entire world.
9 - करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥
मैं अपने मन में बालक मुकुन्द (भगवान कृष्ण) को स्मरण करता हूँ जो कमल जैसे हाथों और कमल जैसे पैर के अँगूठे को मुँह में पकड़े हुए अर्थात् उसे चूसते हुए वट वृक्ष के पत्तों पर सो रहे हैं।
I remember in my mind the child Mukunda (Lord Krishna) sleeping on the leaves of the Banyan Tree, holding the lotus-like hands and the lotus-like toe in the mouth, i.e. sucking it.
10 - ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
हे कृष्ण, वासुदेव, हरि, परमात्मा, आपकी शरण में आने वालों के कष्ट दूर करने वाले, गोविन्द, मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ।
O Krishna, Vasudev, Hari, Paramatma, the one who removes the sufferings of those who come to you for refuge, Govind, I bow to you again and again.
11 - मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिम्
मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिम् ।
यत् कृपा तमहं वन्दे परमानन्दं माधवम् ॥
मैं उन परमानंद माधव (भगवान कृष्ण) की पूजा करता हूं, जिनकी कृपा से गूंगे भी धाराप्रवाह बोलने लगते हैं और लंगड़े भी पर्वत लांघ जाते हैं।
I worship that Paramananda Madhava (Lord Krishna), by whose grace the dumb start speaking fluently and the lame cross mountains.
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