
ऋषि पंचमी पूजा विधि | Rishi panchami puja vidhi - हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी व्रत रखा जाता है। यह त्योहार गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है।
मान्यता के अनुसार यह दिन विशेष रूप से भारत के ऋषियों के सम्मान के लिए समर्पित है। ऋषि पंचमी के दिन ब्राह्मणों को दान देने का बहुत महत्व है।
साथ ही ऋषि पंचमी के दिन व्रत रखने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों की क्षमा भी मिलती है। ऐसे में आइए जानते हैं ऋषि पंचमी व्रत से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें।
ऋषि पंचमी पूजा विधि और सामग्री| Rishi panchami puja vidhi and samagri
ऋषि पंचमी की पूजा विधि सामग्री पहले से लेकर रख लें और सुनिश्चित कर लें की कोई भी सामान कम ना हो।
नीचे ऋषि पंचमी पूजा विधि की सामग्री लिस्ट दी गयी है जो सरलता से मिल जाती है।
ऋषि पंचमी पूजा विधि सामग्री
- धूप, दीप, फल, फूल, घी, नैवेद्य
- एक चौकी
- लाल या पीला कपड़ा
- हल्दी, कुमकुम और रोली
- गंगाजल, पंचामृत
- यज्ञोपवीत, सफेद वस्त्र
- फूल, फल
ऋषि पंचमी पूजा विधि | Rishi panchami puja vidhi | ऋषि पंचमी पूजा व्रत विधि | Rishi panchami puja vrat vidhi
ऋषि पंचमी पूजा व्रत के दिन निम्नलिखित विधि का पालन करें ।
- ऋषि पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। घर और मंदिर की अच्छे से सफाई करें।
- ऋषि पंचमी के दिन स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत आदि पूजन सामग्री एकत्रित करके एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
- अब हल्दी, कुमकुम और रोली का प्रयोग करके चौकोर आकृति (मंडल) बनाएं।
- चौकी / मंडल पर सप्तऋषि का चित्र रखें। तस्वीर पर गंगाजल / शुद्ध जल और पंचामृत डालें।
- चंदन से उनका टीका करें। फूलों की माला पहनाएं और सप्त ऋषियों को पुष्प अर्पित करें।
- सप्त ऋषियों को यज्ञोपवीत पहनाएं। उन्हें सफेद वस्त्र अर्पित करें।
- धूप आदि जलाएं।
- इस मंत्र का जाप करें
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
(इस मंत्र में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ आदि ऋषियों के नाम हैं। )
- अब उन्हें फल और नैवेद्य आदि अर्पित करें और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें।
- इसके बाद आरती करें और सभी को प्रसाद बांटें।
जगह पर कई क्षेत्रों में यह प्रक्रिया नदी के किनारे या तालाब के पास की जाती है।
इस पूजा के बाद महिलाएं अनाज नहीं खाती हैं। बल्कि वे ऋषि पंचमी पर एक विशेष प्रकार के चावल का सेवन करती हैं। इसलिए, ऋषि पंचमी उत्सव का सर्वोत्तम उपयोग करें, अपनी सभी बुराइयों को दूर करें और जो आप चाहते हैं उसे प्राप्त करें।
ऋषि पंचमी पूजा विधि कथा | Rishi panchami puja vidhi katha | ऋषि पंचमी पूजा व्रत कथा | Rishi panchami puja vrat katha
सतयुग में वेद-वेदांगों का ज्ञाता सुमित्रा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी जयश्री के साथ रहता था।
वे खेती करके अपना जीवन यापन करते थे। उनके पुत्र का नाम सुमति था, जो एक उत्तम विद्वान और महान अतिथि-सत्कार करने वाला था।
समय आने पर संयोगवश दोनों की मृत्यु एक ही समय हुई। जयश्री कुतिया के रूप में पैदा हुई और उसका पति सुमित्रा बैल बना। सौभाग्यवश वे दोनों अपने पुत्र सुमति के घर रहने लगे।
एक बार सुमति ने अपने माता-पिता का श्राद्ध किया। उसकी पत्नी ने ब्राह्मणों के भोजन के लिए खीर पकाई, जो अनजाने में एक सर्प के द्वारा दूषित हो गई। यह घटना कुतिया देख रही थी।
उसने सोचा कि खीर खाने वाले ब्राह्मण मर जाएंगे, इसलिए उसने खीर स्वयं छू ली। इस पर सुमति की पत्नी क्रोधित हो गई और उसने कुतिया को बुरी तरह पीटा।
फिर उसने सारे बर्तन साफ करके फिर से खीर पकाई और ब्राह्मणों को खिलाई तथा बची हुई खीर को जमीन में गाड़ दिया। इस कारण कुतिया उस दिन भूखी रही।
जब आधी रात हो गई तो कुतिया बैल के पास आई और सारी बात कह सुनाई। बैल ने दुखी होकर कहा- 'आज सुमति ने मेरा मुंह बांधकर हल में जोत दिया और घास भी नहीं चरने दी। इससे मुझे भी बड़ी पीड़ा हो रही है।'
सुमति उन दोनों की बातें सुन रहा था और उसे मालूम हो गया कि कुतिया और बैल ही हमारे माता-पिता हैं।
उसने उन दोनों को भरपेट भोजन कराया और ऋषियों के पास जाकर माता-पिता के पशु योनि में जन्म लेने का कारण और उनके कल्याण का उपाय पूछा।
ऋषियों ने उसे उनकी मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत करने को कहा। ऋषियों की आज्ञानुसार सुमति ने नियमानुसार श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसके माता-पिता पशु योनि से मुक्त हो गए।
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