करवा चौथ का व्रत अकेले में कैसे करें - हर महिला साल भर करवा चौथ के त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार करती है। इस दिन के लिए महिलाएँ बहुत पहले से ही तैयारियाँ शुरू कर देती हैं। करवा चौथ के दिन महिलाएँ सज-धज कर समूह में एकत्रित होती हैं और फिर पूजा करती हैं।
करवा चौथ का व्रत अकेले में कैसे करें
हिंदू पंचांग के अनुसार यह हर साल कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन वे रात में चंद्रमा को जल अर्पित करने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं।
कुछ कामकाजी महिलाएँ या जो अपने परिवार से दूर रहती हैं, उनके सामने यह समस्या आती है कि वे अकेले करवा चौथ की पूजा कैसे करें। यहाँ जानें, अगर आप अकेली हैं तो आप कैसे करवा चौथ की पूजा कर सकती हैं।
1. व्रत का संकल्प, स्नान और पूजा
- करवा चौथ के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें। व्रत का संकल्प लें और मन में दृढ़ निश्चय करें कि आप पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए रहेंगी।
- सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा के लिए एक जगह साफ करें और वहां दीवार पर करवा (मिट्टी का बर्तन) स्थापित करें।
2. पूजा सामग्री या पूजा का सामान एकत्रित करें
- पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे:
- करवा (मिट्टी का बर्तन)
- दूध, मिठाई, फल, और अन्य प्रसाद
- रोटी या चावल (साधारण आहार)
- पूजा थाली (दीया, फूल, सिंदूर, चावल आदि)
3. कलश स्थापना करें और दीप जलाएं
- पूजा स्थल पर एक कलश स्थापित करें और उसमें जल भरें। कलश पर आम के पत्ते रखें और उस पर एक नारियल रखें।
- करवा के पास एक दीपक या मोमबत्ती जलाएं और पूजा थाली में रखें।
4. चौथ माता का आह्वान करें
- कलश स्थापित करने के बाद हाथ जोड़कर चौथ माता का आवाहन करें और मन में यह विचार लाएं कि हमने अपने सामने चौथ माता की स्थापना की है।
- अब मैं पूजा में अकेली नहीं हूं, बल्कि चौथ माता भी मेरे साथ हैं।
5. मंत्र और श्लोक
- करवा चौथ पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें:
- "ॐ करवे चतुर्थी व्रतं चंद्रमा दयांयाम्।"
- करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
6. पूजा की थाली को इस तरह घुमाएँ
- चौथ माता को अपने सामने रखने के बाद अब पूजा की थाली को कलश के बाईं ओर से दाईं ओर ले जाएँ
- और फिर थाली को बाएँ हाथ से पकड़कर दाईं ओर से बाईं ओर ले जाएँ।
- ऐसा आप 4 बार या 7 बार, जितनी बार चाहें कर सकते हैं।
- इस तरह आप अकेले भी हों तो भी आपकी पूजा पूरी विधि-विधान से पूरी हो सकती है।
7. चाँद के दर्शन करें, पति से वीडियो कॉल करें (अगर संभव हो )
- शाम को चाँद निकलने का समय पहले से जान लें ।
- चाँद निकलने के बाद, थाली में रखे दीपक को चाँद की ओर देखें और फिर अपने पति की लंबी उम्र और सुख के लिए प्रार्थना करें।
- पहले चंद्रमा को जल अर्पित करें और फिर अपने पति का ध्यान करते हुए उन्हें जल अर्पित करें और फिर स्वयं भी जल पी लें। चाँद को देखकर पानी या मिठाई चढ़ाएं।
इस प्रकार, आप अकेले में करवा चौथ का व्रत कर सकती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और सुख के लिए प्रार्थना कर सकती हैं।
करवा चौथ व्रत की कथा | Karva chauth vrat katha
बहुत समय पहले की बात है एक साहूकार के सात बेटे थे और उनकी एक बहन थी जिसका नाम करवा था। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। वे पहले उसे खाना खिलाते और फिर खुद खाते। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को जब भाई अपना व्यापार-व्यवसाय बंद करके घर आए तो उन्होंने देखा कि उनकी बहन बहुत उदास है। सभी भाई खाना खाने बैठ गए और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि वह आज करवा चौथ का निर्जल व्रत रख रही है और वह चांद को देखकर उसे अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खा सकती है। चूंकि चांद अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से बेचैन है।
सबसे छोटा भाई अपनी बहन की हालत नहीं देख पाता और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी के नीचे रख देता है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे चतुर्थी का चांद निकल रहा है।
इसके बाद भाई अपनी बहन से कहता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद खाना खा सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियां चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देती है और खाना खाने बैठ जाती है।
जब वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आती है। जब वह दूसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसमें एक बाल पाती है और जैसे ही वह तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिलता है। वह परेशान हो जाती है।
उसकी भाभी उसे सच बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उसे जीवित करेगी।
वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। वह उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुई जैसी घास को वह इकट्ठा करती रहती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उसका आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम की सुई ले लो और पिया की सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' का आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कहकर चली जाती है।
इस प्रकार जब छठी भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उससे कहती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई के कारण उसका व्रत टूटा था, इसलिए केवल उसकी पत्नी में ही तुम्हारे पति को जीवित करने की शक्ति है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और तब तक नहीं छोड़ना जब तक वह तुम्हारे पति को जीवित न कर दे। यह कहकर वह चली जाती है।
अंत में सबसे छोटी भाभी आती है। करवा उससे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोल करने लगती है। यह देखकर करवा उसे कसकर पकड़ लेती है और अपने पति को जीवित करने के लिए कहती है। भाभी उसे खरोंचती है और खींचती है, लेकिन करवा उसे जाने नहीं देती।
अंत में उसकी तपस्या को देखकर भाभी द्रवित हो जाती है और अपनी छोटी उंगली काटकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार भगवान की कृपा से करवा को उसकी छोटी भाभी के माध्यम से उसका पति वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश- माता गौरी, जिस प्रकार करवा को आपसे सुहागन होने का वरदान मिला है, वैसा ही सभी सुहागन स्त्रियों को मिले।
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